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भारत में बढ़ती समस्याओं का कारण कहीं जनसंख्या का उचित प्रबंधन न कर पाना तो नहीं?

  • डॉ.मनमोहन प्रकाश
    भारत की जनसंख्या निरंतर बढ़ रहा है,इस तथ्य से कोई इंकार नहीं कर सकता। इसमें 2011के जनगणना के आंकड़ों की तुलना में कितनी वृद्धि हुई है यह तो प्रमाणिक रूप से आगामी जनगणना के आंकड़े ही बता सकेंगे। जनसंख्या वृद्धि के बारे में एक सामान्य सिद्धांत है कि यदि देश का क्षेत्रफल बड़ा है, संसाधनों की कोई कमी नहीं है तो जनसंख्या देश के विकास में सहयोगी बन सकती है, उन्नत राष्ट्र की परिकल्पना को साकार करने में मददगार हो सकती है बशर्ते है जनसंख्या प्रोटेक्टिव हो। किन्तु यदि जनसंख्या उपलब्ध संसाधनों के अनुपात से अधिक है तो यही जनसंख्या राष्ट्र के लिए कई समस्याएं भी खड़ी कर सकती है।इस स्थिति में जनसंख्या वृद्धि का सीधे-सीधे मतलब है सभी प्राकृतिक और कृत्रिम संसाधनों में कमी आना, गरीबी, भुखमरी,बेरोजगारी, मेहंगाई ,चोरी, लूटपाट,प्रदूषण आदि का बढ़ना, स्वास्थ्य और शिक्षा पर विपरीत असर पड़ना, अपराधों और सामाजिक समस्याओं में वृद्धि के साथ जटिलता आना।
    यह तथ्य भी उतना ही सही है कि यदि बढ़ती जनसंख्या का सही प्रबंधन किया जाय, उन्हें आधुनिक विश्व स्तर की प्रायोगिक , सैद्धांतिक,कौशल, नवाचार , शोध की शिक्षा उपलब्ध कराई जाए , आत्मनिर्भर बनने का पाठ पढ़ाया जाय , उनमें राष्ट्र प्रेम, राष्ट्र सर्वोपरि की भावना जागृत की जाय तो बढ़ती जनसंख्या रोजगार सृजन और विदेशी मुद्रा अर्जित करने का माध्यम भी बन सकती है। देश के विकास और प्रगति में सहायक हो सकती है। यह तभी संभव है जबकि कि देश की नीतियां युवा पीढ़ी केन्द्रित हो, युवाओं की समस्यायों को ध्यान में रख कर तैयार की गई हो, सभी वर्गों को काम-धंधा तथा रोजगार उपलब्ध कराती हो, जीवन के लिए आवश्यक सुख सुविधा इंतजाम कराती हों। वहीं दूसरी ओर यदि नीतियां युवाओं के अनुकूल नहीं है, उनकी आशा, आकांक्षाओं को पूरी करने वाली नहीं है, समस्याओं का समाधान नहीं करती है,रोजगार के पर्याप्त अवसर उपलब्ध कराने में असमर्थ हैं तो देश में अराजकता बढ़ सकती है, अपराध बढ़ सकते, लूट-पाट, चोरी चकारी में इजाफा हो सकता है, गरीब -अमीर की खाई और गहरी हो सकती है, रोटी-कपड़ा-मकान की किल्लत बढ़ सकती हैं, चिकित्सा-स्वास्थ्य एवं आवश्यक सेवाओं की आपूर्ति प्रभावित हो सकती है, प्रदूषण की समस्या और जटिल हो सकती है, पेयजल तथा खाद्य आपूर्ति करना कठिन हो सकता है तथा प्राकृतिक संसाधनों का संतुलन बिगड़ सकता हैं आदि। आज हमारा देश कई समस्याओं से जूझ रहा है। आये दिन कुछ न कुछ ऐसा देखने सुनने को मिलता है जो देश वासियों को दुःखी करता है फिर चाहे दिन दहाड़े डकैती, हत्या,बलात्कार, छेड़छाड़ आदि के समाचार हो आदिवासी, गरीब, दीन-दुखी को त्रस्त,नीचा, प्रताणित करने की सूचनाएं हो, शराब, नशावृत्ति, व्याभिचार ,जुआ, बेरोजगार , महंगाई आदि के बढ़ते आंकड़े हो।
    सभी भारत में जनसंख्या के उचित प्रबंधन न होने की ओर इशारा करते हैं।अतः शासन, प्रशासन, राजनेताओं, उद्योगपतियों, समाजसेवियों की जिम्मेदारी बनती है कि वे बढ़ती जनसंख्या के उचित प्रबंधन की ओर ध्यान दे। आने वाले कुछ वर्षों में राष्ट्र हित में जनसंख्या को कैसे मैनेज किया जाता है, देश का भविष्य उसी पर टिका है।
    यदि हम भारत की जनसंख्या का गुणात्मक विश्लेषण करें तो हमारी चिंता और भी बढ़ जाती है क्योंकि हमारे देश में कमाऊ आबादी से ज्यादा आश्रित आबादी है और इसी के कारण उत्पादक आबादी हमेशा दबाव में रहती है। किन्तु सुखद बिंदु यह है कि भारत 2030 तक दुनिया में सबसे अधिक युवा आबादी वाला देश रहने वाला है। निश्चित ही देश के विकास की दृष्टि से यह एक सकारात्मक पक्ष हो सकता है यदि हम इस उपलब्धि को अवसर में बदलने वाली नीतियां बनाते हैं,युवाओं की पूरी क्षमता का सही दिशा मे,राष्ट्र के निर्माण एवं विकास में उपयोग करते हैं ।
    भारत के अधिकांश राज्यों में प्रजनन दर का कम होना भी एक अच्छा संकेत है। किंतु बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, राजस्थान, मध्य प्रदेश की सरकारों को जनसंख्या नियंत्रण पर विशेष विशेष देने की आवश्यकता है| जनसंख्या नियंत्रण को प्रोत्साहन देने के साथ शासन को यह सुनिश्चित करना भी आवश्यक हो जाता है कि प्रजनन दर की कमी से विभिन्न जाति, धर्म, संप्रदाय आदि की जनसंख्या में असंतुलन न पैदा हो जाय।भारत में अनुवांशिकी असाध्य रोगों से ग्रस्त शिशुओं के पैदा होना भी एक चिंता का विषय बना हुआ है , इसमें जनसंख्या वृद्धि के साथ और इजाफा न हो,यह भी सुनिश्चित करना होगा|
    आज समाज के एक वर्ग की युवा पीढ़ी में आधुनिक जीवन शैली या कहें कि क्वालिटी जीवन जीने की ललक में विवाह के प्रति उत्साहहीनता भी दृष्टिगत हो रही है। अथार्त अविवाहित रहना, देर से विवाह करना, विवाह के पश्चात भी बच्चे पैदा करने में रुचि नहीं रखना जैसी प्रवृत्ति बढ़ रही हैं, जो गुणात्मक जनसंख्या की दृष्टि से निश्चित ही चिंतनीय हैं- क्योंकि ऐसी सोच वाला वर्ग उच्च शिक्षित है, अच्छी आर्थिक स्थिति वाला है, डबल इनकम ग्रुप है,जो बच्चों को अच्छी परवरिश और उत्तम संसाधन उपलब्ध करा सकता है|मानसिक और शारीरिक दृष्टि से अच्छे जीन भी इसी वर्ग के पास है। विज्ञान की शाखा यूजेनेक्स भी अच्छे जीन को अगली पीढ़ी में ले जाने की सलाह देती है। अतः हमें अपने देश के विकास के लिए और देशवासियों के उन्नत जीवन के लिए अपने प्राकृतिक संसाधनों के अनुपात में जनसंख्या के उचित प्रबंधन पर ध्यान देना होगा।

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