‘नारी तुम प्रेम हो, आस्था हो, विश्वास हो, टूटी हुई उम्मीदों की एकमात्र आस हो।Ó अपनी ममता और आंसुओं से देश का बचपन सँवारने वाली औरत , मां , बेटी ,बहन या पत्नी बनकर पुरुषों का जीवन संवारने वाली औरत, आज भी जुल्मो-सितम की सलीब पर टंगी है। दर्द तो यह है कि यह सितम उस पर उसी पुरूष द्वारा डाल दिया जाता है, जिसको उन्होंने अबतक अपनी ममता की शीतल छांव में ढक कर रखा है। दया और ममता की मूर्ति स्त्री सदियों से ही पुरुषो के वर्चस्व के आगे दबी हुई दिखाई देती है। किसी देश की स्थिति का अंदाजा वहां के रहने वाली महिलाओ के स्थिति से लगाया जा सकता है। एक स्त्री को ममता और प्रेम का आचरण धारण करने वाली कहा जाता है, लेकिन यह भी एक कटु सत्य है कि हमेशा पुरुषों के आगे एक स्त्री को भेदभाव, हिंसा, बुरा बर्ताव आदि का सामना भी करना पड़ता है। लेकिन इन सृष्टि की जननी पर इतने बड़े सामाजिक अत्याचार क्यों हो रहे हैं ? कब तक उसका बलात्कार करेगा यह समाज? कब तक उसे जिंदा जलना होगा? कब तक उसे नंगा घूमना होगा? आज जब वह ज्ञान की रोशनी पा कर तमाम पर्दों को चीरती हुई आसमां को छूने के लिए निकल पड़ी है तो फिर उस पर बलात्कार जैसे धारदार हथियार से सिर्फ हमला ही नही किया जा रहा बल्कि उसे जिंदा जला दिया जा रहा है। कैसा है यह हमारा समाज और कानून जहां ऐसा कोई दिन नहीं होता जब किसी लड़की, बच्ची के साथ कोई जघन्य बलात्कार और हत्या की घटना न होती हो। महिलाओं के सशक्तिकरण में उनके खिलाफ हो रहे हिंसा उनके सामने रुकावट का पत्थर बन कर खड़ा है। एक तरफ जहाँ भारत की बेटियाँ टोक्यो ओलंपिक में पदक जीतने में पुरुषों से काफी आगे है तो वहीं, उसी समय दिल्ली में एक छोटी से बच्ची के साथ पहले बलात्कार होता है और उसके बाद उसे वहीं शमशान में जला दिया जाता है। जब बात पुलिस तक जाती है तो पुलिस पहले दोषियों के कहने पर हत्या और लाश जलाने मात्र का केस करती है और जब बात बढऩे लगती है तो बाद में सामूहिक बलात्कार की धारा भी उसमे शामिल किया जाता है। पुलिस ने अगर तत्काल में ही तत्पर्यता दिखाई होती तो शायद कुछ सबूत भी मिला होता, लेकिन जिस देश में कानून सिर्फ सबूत से चलता है, वहाँ बच्ची को अब न्याय मिलेगा या नहीं वो वक्त के गर्भ में है। महिलाओं पर हो रहे अत्याचार आखिर रुक क्यों नहीं रहे हैं, यह सबसे बड़ा सवाल है। आए दिन उनके साथ हो रहे बलात्कार की घटनाओं को भी याद किया जा सकता है। एन सी आर बी के आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले १० वर्षों में महिलाओं के बलात्कार का खतरा ४४ फीसदी तक बढ़ गया है। आंकड़ों के मुताबिक, २०१० से २०१९ के बीच पूरे भारत में कुल ३,१३,२८९ बलात्कार के मामले दर्ज हुए हैं। इन आकड़ो से आजाद भारत में महिलाओं की वर्तमान स्थिति को देखा जा सकता है। यहां हर १६ मिनट में एक महिला का बलात्कार होता रहा है। हाल-फिलहाल की रेप की घटनाओं पर गौर करे तो एक बात नई दिख रही है। वो यह कि अभी जो भी रेप की घटनाएं हो रहीं हैं, उसमें अत्यधिक में साक्ष्य मिटाने के लिए लड़की को जलाया जा रहा है या उसे मारा – पीटा जा रहा है जो कि अपराध को और जघन्य बना रहा है और यह सब निर्भया कांड के बाद से ही ज्यादातर दिख रहा है। इसका कारण कानून में हुए बदलाव को कहा जा सकता है , क्योंकि यह रेपिस्ट खुद को बचाने और सबूत मिटाने के लिए कर रहे हैं। तो क्या कठोर कानून मात्र से रेप की घटना को नियंत्रित नही किया जा सका है क्योंकि रेप के बाद अब हत्या भी होने लगी है। बड़ा प्रश्न यह है कि फिर रेप का समाधान क्या हो सकता है? निर्भया कांड , प्रियंका रेड्डी , हाथरस कांड जैसी घटनाओं ने मानव जाति को शर्मसार करने का ही काम किया है। दिल्ली के निर्भया कांड के समय में भी देखा गया था कि किस तरह संपूर्ण देश में लोगों में गुस्सा उफान पर आ गया था। सरकार और व्यवस्था की ‘कुर्सीÓ हिलने लगी थी और तब जाकर शासन ने कठोर कानून बनाने की पहल की थी, लेकिन उस कानून का हस्र जो हुआ वह आपके सामने है। आज स्थिति यह है कि बलात्कार के संदर्भ में कठोरतम कानून होने के बावजूद इस तरह के प्रकरणों में कमी नहीं आ रही है । फिर समस्या कहाँ है ? क्या कठोर कानून में कमी है? क्या समाज में कमी है? अनगिनत प्रश्न समाज के समक्ष मुँह बाए खड़ा है। रेप होने के कारणों में कुछ कारण भारतीय सिनेमा , वेब सीरीज और यहां तक कि भारत मे कुछ टीवी सीरियल में भी अश्लीलता आसानी से दिखा देने को माना जाता है। लेकिन रेप के लिए सिनेमा रूपी माध्यम को या समाज के किसी खास वर्ग को कोसना या उसका नकारात्मक चित्रण करना उचित प्रतीत नहीं होता, क्योंकि आज हम उस दौर से बहुत आगे बढ़ चुके हैं। इंटरनेट क्रांति और स्मार्टफोन की सर्व-सुलभता ने पोर्न या वीभत्स यौन-चित्रण को सबके पास आसानी से पहुंचा दिया है। अभी तो इंटरनेट पर एड के नाम पर भी अश्लीलता परोसी जाने लगी है । इन सब कंपनियों को इन बातों से कोई मतलब नही है कि इंटरनेट पर छोटे बच्चे पढ़ रहे है और उसी बीच में एड भी आ जाता है। इंटरनेट भी अब सहज उपलब्ध है। कल तक इसका उपभोक्ता केवल समाज का उच्च मध्य-वर्ग या मध्य-वर्ग ही होता था, लेकिन आज यह समाज के हर वर्ग के लिए सुलभ हो चुका है। यह सबके हाथ में है और लगभग फ्री है। कीवर्ड लिखने तक की जरूरत नहीं, आप बस मुंह से बोलकर ही गूगल को आदेश दे सकते हैं। इसलिए इस परिघटना पर विचार करना किसी खास वर्ग या क्षेत्र के लोगों के बजाय हम सबकी आदिम प्रवृत्तियों को समझने का प्रयास है। तकनीकें और माध्यम बदलते रहते हैं, लेकिन हमारी प्रवृत्तियां कायम रहती हैं या स्वयं को नए माध्यमों के अनुरूप ढाल लेती हैं। आधुनिक युग में मनोवैज्ञानिकों ने भी अपने अध्ययन में पाया है कि हमारे दिमाग की बनावट इस तरह की है कि बार-बार पढ़े, देखे, सुने या किए जाने वाले कार्यों और बातों का असर हमारी चिंतनधारा पर होता ही है और यह हमारे निर्णयों और कार्यों का स्वरूप भी तय करता है। इसलिए पोर्न या सिनेमा और अन्य डिजिटल माध्यमों से परोसे जाने वाले सॉफ्ट पोर्न का असर हमारे दिमाग पर होता ही है और यह हमें यौन-हिंसा के लिए मानसिक रूप से तैयार और प्रेरित करता है। इसलिए अभिव्यक्ति या रचनात्मकता की नैसर्गिक स्वतंत्रता की आड़ में पंजाबी पॉप गानों से लेकर फिल्मी ‘आइटम सॉन्गÓ और भोजपुरी सहित तमाम भारतीय भाषाओं में परोसे जा रहे स्त्री-विरोधी, यौन-हिंसा को उकसाने वाले और महिलाओं का वस्तुकरण करने वाले गानों की वकालत करने से पहले हमें रुककर थोड़ा सोचना होगा। रेप जैसे कुकर्मो से मुक्ति के लिए कानून और समाज दोनों को ही अपनी जिम्मेदारी लेनी होगी। अदालतों में केस का अंबार लगा है। इसमें हजारों बलात्कार के मामले दबे पड़े हैं। देश में न्याय की प्रक्रिया इतनी जटिल हो गई है कि पीडित हताश होने लगे हैं। न्याय की प्रक्रिया को आसान करना होगा, तभी हर व्यक्ति को समय से न्याय मिल पाएगा। आज बलात्कार के मामलों को जल्द-से-जल्द निपटाने की जरूरत है। मामलों में सजा सुनाई जाने लगी, तो फिर अपराधियों में कानून का एक खौफ हो जाएगा। वह गुनाह करने से पहले सौ बार सोचेगा। आज बलात्कार पीडिता को मेडिकल चेकअप कराने के लिए भी समस्याओं से दो-चार होना पड़ता है। फ़ास्ट ट्रेक कोर्ट तो बना है लेकिन उसकी प्रकिया पूरी होते होते भी काफी लंबा वक्त लग रहा है, तब तक बलात्कारी शोषित परिवार को धमका कर ही केस खत्म करवा दे रहे हैं। ऐसे में कानून का डर ही नहीं दिख रहा है। जिस तरह से दिल्ली में पुलिस का बर्ताव हुआ ठीक वैसा ही कई जगहों के बलात्कार के केस में देखने को मिला है। ऐसे में जरूरी है कि पुलिस भी अपनी जिम्मेदारी सही- तरीके से निभाये। उन्हें कॉलेजों के बाहर अपनी गतिविधियां बढ़ानी होंगी और राह चलते लड़कियों पर फब्तियां कसने वालों पर कड़ाई से कार्रवाई करनी होगी। ?सा होने लगा, तो इस तरह की घटनाओं में कमी जरूर आएगी। अगर बात कानून की हो तो बलात्कार की घटनाओं को रोकने के लिए कानून तो बना दिया गया, लेकिन हमें देखना होगा कि इस बीच महिलाओं के प्रति लोगों में संवेदना कितनी बढ़ी है? सरकार ने कानून तो बना दिया, लेकिन उसे क्रियान्वित नहीं कर पाई है। आज के दौर में सामाजिक ताने-बाने को बदलने की जरूरत है, इसमें ही महिलाओं का हित है। हमारे देश में बलात्कार की घटनाएं यौन आकर्षण की वजह से नहीं होती हैं, इसके पीछे का कारण पुरूषों का महिलाओं पर अधिकार समझ लेना भी है। आज घर मे ही परिवार के सदस्यों द्वारा भी इस घटना को अंजाम दे दिया जाता है। ऐसे में जरूरी है कि समाज को भी नैतिक ज्ञान हो, जिससे कि ऐसे कुकर्म करने के पहले उनका ज़मीर जाग सके। इसके लिए स्कूलों के पाठ्यक्रम में भी नैतिक शिक्षा को शामिल किया जा सकता है ताकि महिलाओं के प्रति इज्ज़त का भाव का उन्हें बचपन से ही भान हो। सही शिक्षा और स्वस्थ माहौल तैयार करके ही हम उन्हें आने वाले भविष्य के लिए एक बेहतर नागरिक के तौर पर तैयार कर सकते हैं। एक स्त्री सारे रिश्तों को कितने अच्छे से संभालती है। आज महिलाओं का योगदान सभी क्षेत्र में अहम् है। महिलाएं किसी भी देश के विकास का मुख्य आधार होती हैं। वे परिवार, समाज और देश की तरक्की में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। जहां आज महिलाएं हर क्षेत्र में खुद को साबित कर रही हैं एवं पुरुषों से कंधा से कंधा मिलाकर चल रही हैं वहीं आज भी कई क्षेत्रों में महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार नहीं मिल रहा है। देश की तरक्की करनी है तो महिलाओं को सशक्त बनाना होगा। महिलायें कितनी सक्षम हैं ये किसी को बताने की आवश्यकता नहीं है। महिलाओं ने खुद ही अपनी हिम्मत और श्रम से हर दौर में इसे साबित किया है। महिलाओं के सशक्तिकरण का मतलब है कि महिलाओं को अपनी जिंदगी का फैसला करने की स्वतंत्रता देना या उनमें ऐसी क्षमताएं पैदा करना कि वे समाज में अपना सही पहचान बना सकें। आज महिलाएं रूढि़वादी मान्यताओं और पुरूष प्रधान विचार को अब चुनौती दे रही हैं और हर क्षेत्र में अपने हुनर को आजमा रही हैं। औरते अब तो नई-नई सफलता की मिसालें गढ़ रहीं हैं। समाज के पढ़े-लिखे लोग लड़कियों की शिक्षा के प्रति जागरूक हो रहे हैं और शिक्षित महिलायें देश के विकास में अपना अहम योगदान दे रही हैं। जेम्स स्टीफेंस का कथन है- ” स्त्रियाँ पुरूषों से अधिक बुद्धिमान होती हैं, क्योंकि वे पुरूष से कम जानती हैं, किन्तु उससे अधिक समझती हैं।” देश, समाज और परिवार के उज्ज्वल भविष्य के लिये महिला सशक्तिकरण बेहद जरुरी है। महिलाओं को स्वच्छ और उपयुक्त पर्यावरण की जरुरत है जिससे कि वो हर क्षेत्र में अपना खुद का फैसला ले सकें चाहे वो स्वयं, देश, परिवार या समाज किसी के लिये भी हो। देश को पूरी तरह से विकसित बनाने तथा विकास के लक्ष्य को पाने के लिये एक जरुरी हथियार है- महिला सशक्तिकरण। भारत का संविधान दुनिया में सबसे अच्छा और समानता प्रदान करने वाले दस्तावेजों में से एक है। यह विशेष रूप से लिंग समानता को सुरक्षित करने के प्रावधान प्रदान करता है।
“नारी शक्ति है,सम्मान है, नारी गौरव है,अभिमान है,
नारी ने ही ये विधान रचा, उनको हमारा शत-शत प्रणाम है।”
सिंधुघाटी सभ्यता से लेकर अब तक भारतीय महिलाओं के सम्मान स्तर में काफी कमी आयी, हालांकि आधुनिक युग में कई भारतीय महिलाएं कई सारे महत्वपूर्ण राजनैतिक तथा प्रशासनिक पदों पर पदस्थ हैं, फिर भी सामान्य ग्रामीण महिलाएं आज भी अपने घरों में रहने के लिए बाध्य है और उन्हें सामान्य स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी सुविधाएं भी उपलब्ध नही हैं। आज महिलाएं अपने करियर को लेकर गंभीर हैं, हांलाकि, महिलाओं को सशक्त बनाने के लिये सबसे पहले समाज में उनके अधिकारों और मूल्यों को मारने वाले उन सभी राक्षसी सोच को मारना जरुरी है, जैसे दहेज प्रथा, यौन हिंसा, अशिक्षा, भ्रूण हत्या, असमानता, महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा, कार्य स्थल पर यौन शोषण, बाल मजदूरी, वैश्यावृति, मानव तस्करी और ऐसे ही दूसरे विषय। लैंगिक भेदभाव राष्ट्र में सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक अंतर ले आता है जो देश को पीछे की ओर ढ़केलता है। महिलाओं को समाज में जिस बर्ताव और जिस हिंसा का सामना करना पड़ता है, उसका एक भयानक रूप है- एसिड हमला। हाल ही में इस ज्वलन्त मुद्दे को सिनेमा में भी दिखाया गया है, जो समाज को उनके दर्द को दिखा रहा है। पूरी दुनिया में लड़कियों और औरतों पर एसिड अटैक जैसी भयानकतम वारदातों के साथ एक गंभीर प्रश्न कानून व्यवस्था के साथ बाजार का भी जुड़ा हुआ है। किसी भी पीडि़त के मन में ये सवाल पैदा होना लाजि़मी है कि क्या तेज़ाब जैसी संवेदनशील वस्तु की बिक्री और उपलब्धता बाजार में अन्य सामानों की तरह होनी चाहिए? समाज में जिस तरह से उनके साथ बुरा बर्ताव किया जा रहा है और उन्हें अस्पृश्य बना दिया गया है वो अमानवीय है। आज इस एसिड अटैक की वजह से बहुत सारी लड़कियों और महिलाओं की जान जा चुकी हैं, लड़कियों और महिलाओं की जि़ंदगी बर्बाद हो चुकी है, बहुत सारी लड़कियां और महिलाएं आज बद-से-बदतर हालात में अपना जीवन- यापन करने को मजबूर हैं। एसिड अटैक पर न्यायपालिका के साथ-साथ सरकार को अब ऐसे कुछ सख्त क़ानून बनाने चाहिए जो इस देश के साथ साथ दुनिया के लिए एक ट्रेंड सेटर साबित हो साथ ही ऐसा कोई कानूनी प्रावधान भी होना चाहिए जिसमें एसिड हमलों की शिकार महिला को सभी तरह की सुरक्षा और सुविधाएं सुनिश्चित हो। हम आजाद देश के नागरिक है लेकिन ये कैसी आजादी है जहाँ पर महिलाओं को आज भी शाम होने के बाद बाहर निकलने में संकोच है। ज्यादा रात होने पर या हैदराबाद या निर्भया जैसी घटना को अंजाम देने से भी लोग बाज नही आते है। प्रश्न यह उठता है कि दिनदहाड़े हो या फिर रात के अंधेरे में, आखिर कोई महिला या बच्ची सुरक्षित क्यों नहीं है? कहां है शासन और कानून? ऐसी घटनाएं इसके बावजूद हो रही हैं तो ऐसे पत्थर हृदय नेता और अधिकारी किस मुंह से अपने पदों पर बैठे हुए हैं। वह वक्त था जब निर्भया कांड के समय पूरे केंद्र सरकार को लोगों ने कठघरे में खड़ा कर दिया था लेकिन क्या आज हम ऐसा कर रहे हैं? आज सभी बलात्कार को भी धर्म का रूप देने में लगें तो वही कई लोग राजनीति की रोटी सेक कर अपनी वोट बैंक तैयार करने में लगे हैं। कैंडल मार्च से इस समस्या का समाधान नही होने वाला है। सिर्फ मोमबत्तियां जलाकर पुष्पाजंलि अर्पित करना सिर्फ एक मानसिक छलावा करने जैसे होगा, समस्या का निदान नहीं, न जाने कितनी मोमबत्तियां इसके पहले भी जलाई गयीं और श्रद्धासुमन अर्पित किया गए, लेकिन परिणाम ज्यों-का-त्यों। बलात्कार जैसी घटनाओं से निजात पाने के लिए कानून का सख्ती से पालन करना होगा, सभी पोर्न साइट्स को पूर्ण रूप से प्रतिबंधित करना होगा। सामाजिक रूप से हर माँ-पिता का दायित्व बनता है कि अपने बच्चों को शिक्षा दे कि वह महिलाओ का सम्मान करे, उनका शोषण न करे क्योकि ये जो लोग बलात्कार कर रहे हैं, वे हमारे से समाज से ही निकल कर आते हैं। “अहिंसा हमारे जीवन का धर्म है तो भविष्य नारी जाति के हाथ में है।” महात्मा गाँधी का यह कथन महिलाओं की उपयोगिता को चरितार्थ कर रहा है। गांधीजी महिलाओं को सशक्तीकरण के विषय के रूप में नहीं देखते थे, बल्कि उनका मानना था कि महिलाएं स्वयं इतनी सबल हैं कि खुद की ही नहीं वरन संपूर्ण मानव जाति के कल्याण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। उनका कहना था कि अगर महिलाओं को आजाद होना है तो उन्हें निडर बनना होगा। परिवार और समाज के बंधनों को तोड़ते हुए उनपर थोपे गए अन्याय का विरोध करना ही उन्हें जुल्मों से मुक्ति दिला सकता है। उनका कहना था कि महिलाओं को अपने अधिकारों और कर्तव्यों का ज्ञान होना चाहिए। गांधीजी बराबर कहते रहे कि महिलाओं को सशक्त बनना है तो इसकी पहल परिवार से ही करनी होगी। गलत बातों को वह जब तक सहेगी उसके साथ जुल्म होता रहेगा। गांधीजी ने कहा था- जिस दिन से एक महिला रात में सड़कों पर स्वतंत्र रूप से चलने लगेगी, उस दिन से हम कह सकते हैं कि भारत ने स्वतंत्रता हासिल कर ली है। यहां महिलाओं को उपर्युक्त कानून बनाकर काफी शक्तियां दी गई हैं लेकिन ग्राउंड लेबल पर अभी भी बहुत ज्यादा काम करने की जरूरत है। इसके बावजूद महिलायें अपनी जि़म्मेदारियां बखूबी और बेहद सुंदरता से और खास बात बगैर किसी अपेक्षा के निभाये जा रही हैं। भारत सरकार द्वारा महिला सशक्तिकरण के लिए कई सारी योजनाएं चलायी जाती हैं। इनमें से कई सारी योजनाएं रोजगार, कृषि और स्वास्थ्य जैसी चीजों के लिए चलायी जाती हैं। इन योजनाएं का गठन भारतीय महिलाओं के परिस्थिति को देखते हुए किया गया है ताकि समाज में उनकी भागीदारी को बढ़ाया जा सके। सचमुच नारी तो – “दुनिया की पहचान है औरत, हर घर की जान है औरत, बेटी, बहन, माँ और पत्नी बनकर, घर-घर की शान है औरत।” -नृपेन्द्र अभिषेक नृप
