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हमास के खिलाफ है भारत फिलिस्तीन के नहीं

  • डॉ. प्रभात ओझा
    इजराइल पर हमास के हमले और फिर इजराइल की जवाबी कार्रवाई में एक पक्ष कमजोर पड़ गया है। वह पक्ष है फिलिस्तीन राष्ट्र का। निश्चित ही इस पक्ष को फिलिस्तीन आधारित हमास जैसे आतंकवादी संगठन ने कमजोर किया है। विडंबना यह है कि हमास अपने को फिलिस्तीन का उद्धारक मानता है और गाजा पट्टी के एक हिस्से पर उसका अधिकार भी है। ताजा घटनाक्रम में इजराइली सेनाओं ने गाजा को घेर रखा है। वहां रसद जैसी जरूरी आपूर्ति के साथ पानी तक की समस्या खड़ी हो गई है। अमानवीय हालात तो यह है कि केंद्रीय गाजा के अल अहली अस्पताल में रॉकेट अटैक में 500 से ज्यादा लोग मारे गए हैं। मरीजों के साथ यहां अन्य लोगों ने भी शरण ली थी। दिल हिला देने वाले इस हमले के बाद युद्ध का परिदृश्य बदल गया है। अमेरिकी राष्ट्रपति इजराइल यात्रा पर पहुंचे। जहां से वे जार्डन जाने वाले थे। वहां उनकी किंग अब्दुल्ला द्वितीय, मिस्र के राष्ट्रपति अब्दुल फतह अल सीसी के साथ बातचीत होने वाली थी। गाजा के अस्पताल में हमले के बाद इन देशों ने बातचीत रद्द कर दी। हालांकि बाद में बाइडेन ने मिस्र के राष्ट्रपति फतह अल सीसी से बातचीत की और गाजा में मानवीय सहायता भेजे जाने के लिए मिस्र ने राफा बॉर्डर खोलने की सहमति दी।
    जो भी हो, दो दिन पहले के अपने इंटरव्यू में बाइडन ने फिलिस्तीन का भी नाम लिया था। हमास और इजराइल संघर्ष में अमेरिका पूरी क्षमता के साथ इजराइल के साथ है। हमास जैसे आतंकी संगठन के बर्बर हमले के कारण दुनिया के कई देश इजराइली जनता के पक्ष में खड़े हैं। इनमें भारत भी है और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हमास के हमलों की कटु निंदा की है। उन्होंने किसी भी तरह की आतंकी कार्रवाई को दुनिया की प्रगति में बाधक बताया है। प्रधानमंत्री के बयान के दो दिन बाद ही विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने फिलिस्तीन का समर्थन करते हुए द्विराष्ट्र के सिद्धांत की वकालत की।
    यहां समझना होगा कि कथित रूप से फिलिस्तीन के लिए लड़ने वाले हमास और स्वयं फिलिस्तीन राष्ट्र में फर्क है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने अपने बयान में इस मुद्दे पर भारत की नीति को दीर्घकालिक और सुसंगत बताया। उनके मुताबिक, भारत ने इजरायल के साथ सुरक्षित और मान्यता प्राप्त सीमाओं के भीतर सदैव एक संप्रभु, स्वतंत्र फिलिस्तीन की स्थापना की वकालत की है। भारत का मानना है कि यह सीधी वार्ता की बहाली और इसके साथ ही इजराइल के साथ शांतिपूर्ण संबंधों से सम्भव होगा। स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री ने सिर्फ आतंकवाद पर इजराइल के साथ खड़े होने की दृढ़ता दोहराई है। इस पूरे मसले को इजरायल, फिलिस्तीन और हमास के नजरिए से देखना होगा। फिलिस्तीन की बात भारत 1974 के पहले से ही करता आ रहा है। फिलिस्तीन नेशनल अथॉरिटी यानी पीएनए ही स्टेट ऑफ फिलिस्तीन है। फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन अर्थात पीएलए के प्रमुख फतह पार्टी के अध्यक्ष महमूद अब्बास मई 2005 से इसके राष्ट्रपति भी हैं। उसके पहले करीब 15 साल तक यासिर अराफात इस जगह पर थे। यासिर अराफात के समय भारत के साथ फिलिस्तीन के सम्बंधों में अधिक मजबूती दिखी थी।
    गैर अरब देशों में भारत फिलिस्तीन नेशनल अथॉरिटी को मान्यता देने वाला पहला देश है। हम फिलिस्तीन स्टेट को भी मान्यता देने वाले देशों में शामिल हैं। वर्ष 1996 में गाजा में भारत ने अपना प्रतिनिधि कार्यालय खोला। वर्ष 2003 में उसे रामल्ला में स्थानांतरित कर दिया गया।
    संयुक्त राष्ट्र महासभा के 53 वें सत्र के दौरान (1998-99) भारत ‘आत्मनिर्णय के लिए फिलिस्तीनियों के अधिकार’ सम्बंधी मसौदा प्रस्ताव का सह-प्रायोजक था। वर्ष 2003 में इजरायल द्वारा दीवार बनाने के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव के पक्ष में भी भारत मतदान करने वालों में शामिल था। यूएनए के 2012 के संकल्प के पक्ष में भी भारत ने मतदान किया था। यह प्रस्ताव फिलिस्तीन को संयुक्त राष्ट्र में ‘गैर-सदस्य पर्यवेक्षक राज्य’ बनाने का था। इस प्रस्ताव के साथ दुनिया के 138 देश थे। ताजा मामला नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के ठीक बाद का है, जब सितंबर 2015 में संयुक्त राष्ट्र परिसर में फिलिस्तीनी ध्वज की स्थापना का भारत ने समर्थन किया था। स्पष्ट है कि भारत फिलिस्तीनी आतंकी हमास के खिलाफ है, फिलिस्तीन के खिलाफ नहीं।

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