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मातृशक्ति को लज्जित करती अमर्यादित भाषा!

  • सोनम लववंशी
    लोकसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान के साथ ही पूरे देश में राजनीतिक सरगर्मियां उफान पर है। सियासत के सूरमा ज़िक्र तो लोक कल्याण और समावेशी विकास करते हैं, लेकिन इक्कीसवीं सदी के बदलते भारत की राजनीति भी करवटें बदल रही है। विपक्ष तो विपक्ष सत्ता पक्ष भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर कब राजनीति की नैतिकी और सिद्धांतों को धत्ता बता दें। यह पता ही नहीं चलता। ऐसे में अभिव्यक्ति के नाम पर अनर्गल बयानबाजी ने राजनीति की शुचिता को तार-तार कर दिया है। बोल के लब आजाद है तेरे पंक्ति का शोर आजकल राजनैतिक आबोहवा में गुंजित हो रहा है।
    ऐसे में मालूम तो यही पड़ता कि जब मशहूर शायर फैज अहमद फैज ने इन पंक्तियों को लिखा होगा तो शायद ही कभी ये सोचा होगा कि देश के राजनेता उनकी इस पंक्ति के सहारे शब्दों की सारी मर्यादा लांघ जाएंगे! यूं तो महिलाओं के प्रति की जाने वाली अभद्र टिप्पणियों के लिए भारतीय लोकतंत्र सदियों से बदनाम रहा है, लेकिन चुनाव आते-आते विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के मंदिर को अमर्यादित भाषा के वायरस से कलंकित करने में हमारे राजनेता कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं। खासकर महिला नेताओं को लेकर अभद्र टिप्पणी का दौर कुछ इस तरह चल पड़ा है। जो अब थमने का नाम नहीं ले रहा है। आलम तो कुछ यूं हो चला है कि अब महिला नेत्री भी इस मुकाबले में पीछे नहीं रही है।
    बीते दिनों ही कंगना रनौत और ममता बनर्जी पर की गई आपत्तिजनक टिप्पणियां इसकी ताजा मिसाल हैं। लेकिन महिलाओं पर ऐसे हमले क्यों होते हैं और यह स्थिति कैसे बदलगी? ये कोई नहीं कह सकता। वैसे जब महिला ही महिला को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी करने लगें। फिर स्थिति और असहज हो जाती है। बीते दिनों पश्चिम बंगाल से बीजेपी सांसद दिलीप घोष ने राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर विवादित टिप्पणी की। उन्होंने कहा, “दीदी (ममता बनर्जी) गोवा में खुद को गोवा की बेटी बताती हैं, त्रिपुरा जाकर खुद को त्रिपुरा की बेटी बताती हैं। उन्हें पहले अपने पिता की पहचान करनी चाहिए।
    यूं तो चुनाव आयोग ने ऐसे बयानों पर चेतावनी देकर इतिश्री कर ली है। पर इससे कोई खास फ़र्क नहीं पड़ा तभी तो अभी हाल के दिनों में ही कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और सांसद रणदीप सुरजेवाला ने हरियाणा के कैथल में जनसभा को संबोधित करते हुए कहा था कि हम लोग विधायक, सांसद क्यों बनते हैं? हम हेमा मालिनी तो हैं नहीं कि चाटने के लिए बनते हैं। अब जरा कोई रणदीप सुरजेवाला को यह बताएगा कि कांग्रेस में भी महिलाएं सांसद-विधायक क्यों बनती हैं? आिख़रकार रणदीप सुरजेवाला कोई दूध पीते बच्चे तो है नहीं । एक पार्टी का जिम्मेदार नेता कैसे अशोभनीय भाषा और नीचता पर उतारू हो जाता है, यह समझ नहीं आता। महिलाओं के साथ छींटाकशी आधुनिक समाज में भी चरम पर हैं।

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