डॉ. मयंक चतुर्वेदी। अयोध्या में भगवान श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा की तैयारियां जोरों पर हैं। इस समारोह को लेकर अंतर्विरोध भी देखने को मिल रहा है। एक तरफ ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन राजनीतिक पार्टी है, जिसके प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी राममंदिर और बाबरी ढांचे के बहाने फिर से सांप्रदायिक तनाव बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं तो दूसरी ओर राम मंदिर को लेकर कांग्रेस नेता और पूर्व सांसद उदित राज का एक विवादित बयान सामने आया है, जिसमें वे कहते दिखे, ‘‘500 साल बाद मनुवाद की वापसी हो रही है।’’
इसी बीच राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) में काम करनेवाले लालू यादव एवं उनके बच्चों के भक्तगण, राजनीतिक कार्यकर्ता और कुछ चमचे हैं जो मंदिर की तुलना आज स्कूल से कुछ इसत तरह से कर रहे हैं जैसे कि मंदिर अज्ञानता के गढ़ हैं और इनसे सभी को दूरी बनाए रखना चाहिए ।
वस्तुत: लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी के घर के बाहर जो विवादित पोस्टर लगा है, उससे तो यही समझ आ रहा है कि अयोध्या में बन रहा भगवान श्रीराम का भव्य मंदिर इन लोगों को रास नहीं आ रहा । कहने को जिन्होंने ये पोस्टर लगवाया है, वे आरजेडी के विधायक अपने नाम के साथ जिस जाति कुशवाहा समाज और धर्म का उल्लेख करते हैं, वह हिन्दू है। आश्चर्य इस बात पर होता है कि हिन्दू होकर मंदिरों से इतना द्रोह! क्या इन्हें मंदिर के होने के पीछे का मनोविज्ञान नहीं पता? और यदि नहीं भी पता है तो अच्छा होता यह सभी कुछ अनर्गल लिखने के पूर्व उस दर्शन और विशेष ज्ञान को प्राप्त करते जोकि प्रत्येक मंदिर के होने के पीछे का सत्य है।
सच पूछिए तो इस तरह की सोच रखनेवालों की बुद्धि पर तरस आता है, यह तरस इसलिए भी है क्योंकि भारत भूमि पर किसी हिन्दू घर में जन्म लेने के बाद भी ये लोग अब तक मंदिर के होने के पीछे के अंतरदर्शन को नहीं जान पाए हैं और न ही आगे भी जानने में कोई रुचि रखते हैं। इस तरह की सोच रखने वाले थोड़ा इतिहास का अध्ययन अवश्य करें; भारत के इतिहास में ही नहीं दुनिया भर के इतिहासकार इस बात के लिए एकमत हैं कि मंदिरों में बैठकर ही महान ज्ञान परंपरा का विकास हुआ है। ये मंदिर जीवन को गहराई के साथ समझने के वो केंद्र रहते आए हैं, जिसमें कि परा-अपरा समस्त प्रकार की विद्याएं मौजूद हैं।
आरजेडी के लोगों का स्कूल के साथ मंदिर की तुलना भी मुखर्तापूर्ण लगती है, क्योंकि आज भी भारत के हजारों हजार मंदिर ज्ञान धारा के जीवंत केंद्र हैं। आधुनिक एवं प्राच्य शिक्षा को संचालित करनेवाले सुदूर दक्षिण के किसी प्रदेश से लेकर उत्तर के अंतिम छोर तक भारत भर में अनेक मंदिर हैं जो ज्ञान का दीप अपने विभिन्न विद्यालयों एवं महाविद्यालयों के माध्यम से प्रकाशित कर रहे हैं।