Home » प्रकृति को सहेजने से बचेगा मानव का जीवन

प्रकृति को सहेजने से बचेगा मानव का जीवन

  • ललित गर्ग
    विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस प्रत्येक वर्ष 28 जुलाई को मनाया जाता है। प्रकृति एवं पर्यावरण पर मंडरा रहे खतरे को देखते हुए एवं वर्तमान परिप्रेक्ष्य में कई प्रजाति के जीव-जंतु, प्राकृतिक स्रोत एवं वनस्पति विलुप्त होने के कारण इस दिवस की प्रासंगिकता बढ़ गयी है। आज चिन्तन का विषय न तो युद्ध है और न मानव अधिकार, न कोई विश्व की राजनैतिक घटना और न ही किसी देश की रक्षा का मामला है। चिन्तन एवं चिन्ता का एक ही मामला है लगातार विकराल एवं भीषण आकार ले रही गर्मी, सिकुड़ रहे जलस्रोत, विनाश की ओर धकेली जा रही पृथ्वी एवं प्रकृति के विनाश के प्रयास। बढ़ती जनसंख्या, बढ़ता प्रदूषण, नष्ट होता पर्यावरण, दूषित गैसों से छिद्रित होती ओजोन की ढाल, प्रकृति एवं पर्यावरण का अत्यधिक दोहन- ये सब पृथ्वी एवं पृथ्वीवासियों के लिए सबसे बडे़ खतरे हैं और इन खतरों का अहसास करना ही विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस का ध्येय है।
    प्रतिवर्ष धरती का तापमान बढ़ रहा है। आबादी बढ़ रही है, जमीन छोटी पड़ रही है। हर चीज की उपलब्धता कम हो रही है। आक्सीजन की कमी हो रही है। साथ ही साथ हमारा सुविधावादी नजरिया, तकनीकी विकास एवं जीवनशैली पर्यावरण एवं प्रकृति के लिये एक गंभीर खतरा बन कर प्रस्तुत हो रहा हैं। इतिहास में पहली बार यूरोप में भीषण गर्मी, हीट वेव का होना और धरती के दोनों सिरों (अंटार्कटिक और आर्कटिक) पर एकसाथ तापमान में असंतुलन सामान्य घटना नहीं है। ये सब धरती के तापमान में असंतुलन और जलवायु परिवर्तन की वजह से हो रहा है, जिसका दायरा अब वैश्विक हो गया है। भले ही कोई इस विनाशकारी स्थिति को तात्कालिक घटना कहकर खारिज कर दे लेकिन जमीनी सच्चाई यह है की बड़े पैमाने पर ग्लेशियर्स का पिघलना और यूरोप में हीट वेव बहुत बड़े वैश्विक खतरें की आहट है, जिसको अनदेखा नहीं किया जा सकता है। कथित विकास की बेहोशी से दुनियां को जागना पड़ेगा।
    ग्लोबल वार्मिंग की वजह से ‘तीसरा ध्रुव’ कहे जाने वाले हिमालय के ग्लेशियर 10 गुना तेजी से पिघल रहे हैं। ब्रिटेन की लीड्स यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के अनुसार, आज हिमालय से बर्फ के पिघलने की गति ‘लिटल आइस एज’ के वक्त से औसतन 10 गुना ज्यादा है। लिटल आइस एज का काल 16वीं से 19वीं सदी के बीच का था। इस दौरान बड़े पहाड़ी ग्लेशियर का विस्तार हुआ था। वैज्ञानिकों की मानें, तो हिमालय के ग्लेशियर दूसरे ग्लेशियर के मुकाबले ज्यादा तेजी से पिघल रहे हैं। विशेषज्ञों के एक अनुमान के अनुसार अंटार्कटिका के ग्लेशियर के पूरी तरह से पिघलने पर पृथ्वी की ग्रेविटेशनल पावर शिफ्ट हो जाएगी। इससे पूरी दुनिया में भारी उथल पुथल देखने को मिलेगी। पृथ्वी के सभी महाद्वीप आंशिक रूप से पानी के भीतर समा जाएंगे। भारी मात्रा में जैव-विविधता को हानि पहुंचेगी। पृथ्वी पर रहने वाली हजारों प्रजातियां भी खत्म हो जाएंगी। पृथ्वी पर एक विनाशकारी एवं विकराल स्थिति का उद्भव होगा। इसके साथ ही दुनियां भर में करोड़ों की संख्या में लोगों को एक जगह से दूसरी जगह पर माइग्रेट करना पड़ेगा। अर्थव्यवस्था और रहने लायक जगह पूरी तरह से तहस-नहस हो जाएगी। ग्लेशियर पिघलने का प्रभाव पृथ्वी की घूर्णन गति पर भी पड़ेगा। इससे पृथ्वी के दिन का समय थोड़ा ज्यादा बढ़ जाएगा। पीने लायक 69 प्रतिशत पानी ग्लेशियर के भीतर जमा हुआ है। उसके पिघलने पर ये शुद्ध पानी भी साल्ट वाटर में मिलकर पूरी तरह बर्बाद हो जाएगा।
    पिछले कुछ समय से दुनिया में पर्यावरण के विनाश एवं प्रकृति प्रदूषण को लेकर काफी चर्चा हो रही है। मानव की गतिविधियों के कारण पृथ्वी एवं प्रकृति के वायुमंडल पर जो विषैले असर पड़ रहे हैं, उनसे राजनेता, वैज्ञानिक, धर्मगुरु और सामाजिक कार्यकर्ता भी चिंतित हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर्यावरण के खतरों के प्रति सावधान करते हुए विश्व मंचों पर जागरूकता का माहौल बना रहे हैं। चूंकि प्रकृति मनुष्य की हर जरूरत को पूरा करती है, इसलिए यह जिम्मेदारी हरेक व्यक्ति की है कि वह प्रकृति की रक्षा के लिए अपनी ओर से भी कुछ प्रयास करे। जल, जंगल और जमीन इन तीन तत्वों से प्रकृति का निर्माण होता है। यदि यह तत्व न हों तो प्रकृति इन तीन तत्वों के बिना अधूरी है। विश्व में ज्यादातर समृद्ध देश वही माने जाते हैं जहां इन तीनों तत्वों का बाहुल्य है।आधुनिकीकरण के इस दौर में जब इन संसाधनों का अंधाधुन्ध दोहन हो रहा है तो ये तत्व भी खतरे में पड़ गए हैं।

Swadesh Bhopal group of newspapers has its editions from Bhopal, Raipur, Bilaspur, Jabalpur and Sagar in madhya pradesh (India). Swadesh.in is news portal and web TV.

@2023 – All Right Reserved. Designed and Developed by Sortd