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अमर्यादित कथन कैसे करें कोई सहन?

  • गिरीश पंकज
    बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की देशभर में थू-थू हो रही है । अब तो वायरल होने का दौर है। चीज़े सोशल मीडिया के माध्यम से देश के बाहर भी चली जाती हैं। इसलिए कह सकते हैं कि देश के बाहर भी मुख्यमंत्री की निंदा हुई। भारतीय लोग पूरी दुनिया में बसे हुए हैं, और वे भारत की हर बड़ी गतिविधि को देख कर प्रतिक्रियाएं भी देते हैं । फिर बिहार के सीएम ने तो ऐसा कांड कर दिया, जिस पर कड़ी प्रतिक्रियाएं आना स्वाभाविक भी है। नीतीश कुमार को सुशासन बाबू कहा जाता है। लेकिन इस सुशासन बाबू ने पिछले दिनों विधानसभा में आत्मानुशासन ही तोड़ दिया! उन्होंने विधान सभा और विधान परिषद में जाकर से सेक्स शिक्षा के बारे में विधायकों के बीच अपना कुछ ऐसा ‘खुला-खुला’ ज्ञान बघारा कि मत पूछो। उसके कारण देखते-ही-देखते देश भर में उनके विरुद्ध निंदा और प्रदर्शन का दौर शुरू हो गया। महिलाएं सर्वाधिक उत्तेजित थीं कि सुशासन बाबू ने कितने घिनौने तरीके से स्त्री-पुरुष संबंधों की व्याख्या की। उनकी बातें ऐसी हैं, जिनको यहाँ लिख पाना भी संभव नहीं है। बस, हम समझ सकते हैं कि उन्होंने कितनी अश्लील प्रस्तुति दी होगी। टीवी पर उनके वक्तव्य को संपादित करके दिखाया गया । अगर पूरा दिखाया जाता, तो लंपट लोगों को तो मजा आता लेकिन माँ- बहनों का सिर शर्म से झुक जाता। देशव्यापी प्रतिक्रिया देखते हुए अंत में नीतीश कुमार को आत्मग्लानि हुई और उन्होंने सार्वजनिक रूप से अपने वक्तव्य के लिए खेद प्रकट किया और कहा कि “मैं खुद अपनी निंदा करता हूँ”। टीवी पर बहस होने लगी, तो उनके दल के प्रवक्ताओं ने सफाई देते हुए कहा कि जब उन्होंने माफी मांग ली, तो इस मुद्दे पर चर्चा क्यों ?लेकिन क्या माफी मांग लेने भर से नीतीश कुमार के पाप धुल जाएंगे? क्या धनुष से निकला हुआ तीर कभी वापस लौट सका है ??इसीलिए सार्वजनिक जीवन में काम करने वाले लोगों को बहुत संयम के साथ सोच-समझकर बोलना चाहिए । कबीर दास जी ने तो छह सौ साल पहले कह दिया था, ” ऐसी बानी बोलिए मन का आपा खोय/औरों को शीतल करे आपहूँ शीतल होय।” लेकिन बहुत कम लोग ऐसा कर पाते हैं । तब आज के कवि को लिखना पड़ता है, ”मन की कुंठा को अरे,मत दुनिया में खोल/ वरना थू-थू होयगी/ कुरसी जाए डोल”। हालत यह है कि अगर किसी दल के किसी नेता ने कोई गलत बात कह दी तो उसके बचाव में उसके दल के तमाम नेता खड़े होकर दूसरे दलों के नेताओं द्वारा कहे गए बयानों की याद दिलाने लगते हैं ।इसका मतलब यह हुआ कि हमारे नेता ने कह दिया तो क्या हुआ, तुम्हारे नेता भी तो ऐसा- वैसा कुछ कहते रहे हैं । लेकिन इसमें दो राय नहीं कि इसके पहले अनेक नेताओं ने कुछ भी गलत- सलत बयान दिया होगा लेकिन बिहार की विधानसभा में वहां के मुख्यमंत्री ने जिस अश्लील तरीके से सेक्स शिक्षा को लेकर अपना ज्ञान बघारा, वह किसी भी कोण से मर्यादित नहीं कहा जा सकता। उनके वक्तव्य को सुनकर सर्वाधिक दुखी महिलाएं हुई। कुछ महिलाओं ने तो प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए आंसू भी बहाए, क्योंकि सार्वजनिक जीवन में निर्लज्जता का इससे वीभत्स उदाहरण पहले कभी नहीं देखा गया। नीतीश कुमार को विपक्षी गठबंधन के बीच प्रधानमंत्री का एक चेहरा बनाकर भी उभरने की कोशिश होती रही है। अब लोग आपस में चर्चा कर रहे हैं कि क्या इतनी घटिया अभिव्यक्ति देने वाला व्यक्ति प्रधानमंत्री पद के योग्य है, कदापि नहीं! और इसका असर अब बिहार विधानसभा के चुनाव पर भी पड़ेगा। बिहार के लोग ज्यादा शर्मसार हो रहे हैं कि उनके मुख्यमंत्री के कारण देश-दुनिया में बिहार की फजीहत हुई है। बिहार की घटना एक सबक है। हर राजनेता के लिए। वह अंदर से भले कुछ हो लेकिन बोलते वक्त वाकसंयम बहुत जरूरी है ।वैसे नीतीश कुमार ने कोई अनहोनी बात नहीं की थी लेकिन उनकी निर्लज्ज प्रस्तुति बेहद अशालीन थी। हमारे समाज में शालीनता को हमेशा महत्व दिया गया है। और पूरी दुनिया में ऐसा होता है,इसीलिए तो स्नानागार और शौचालय में दरवाजे लगाए जाते हैं। शालीनता से बोलना भी एक तरह का दरवाजा लगाना है । लेकिन नीतीश बाबू ने तो दरवाजा ही तोड़ दिया !और देश के सामने एक तरह से उनका असली चेहरा सामने आ गया। अब वे लाख माफी मांगे, अपनी निंदा का नाटक करें, इससे क्या होता है । वक्तव्य रूपी तीर तो उनके मुँहरूपी कमान से निकल ही चुका है।

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