- अजय सेतिया
भारत में मुस्लिम स्कालर कहते हैं कि हिजाब इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा है| सुप्रीमकोर्ट की दो सदस्यीय पीठ उनकी दलीलें सुनने के बाद इस नतीजे पर नहीं पहुंच सकी कि हिजाब इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा है या नहीं| 14 अक्टूबर 2022 को सुप्रीमकोर्ट की दो सदस्यीय बैंच ने यह तय करने का अधिकार बड़ी बैंच को सौंप दिया था कि हिजाब इस्लाम का अनिवार्य अंग है या नहीं| सितंबर महीने में जब भारत में इस्लामिक संगठन हिजाब को मुस्लिम महिलाओं की अनिवार्य मुस्लिम पौशाक साबित करने की कोशिश कर रहे थे, तभी इस्लामिक देश ईरान की महिलाएं हिजाब के खिलाफ सडकों पर उतर आई थीं| 1979 में ईरान की इस्लामिक क्रान्ति के चार साल बाद 1983 में एक क़ानून बना कर हिजाब को लाजिमी किया गया था| इस क़ानून को लागू करने के लिए गश्त-ए-इरशाद पुलिस का गठन किया गया| मुस्लिम महिलाएं हिजाब और मोरल पुलिस के खिलाफ लगातार आवाज उठाती रही थीं, लेकिन क्रूर इस्लामिक शासन पर उस का कोई असर नहीं हुआ| जो भी महिला बिना हिजाब घर से बाहर दिखाई देती थी, गश्त-ए-इरशाद पुलिस उसे उठा ले जाती थी, और उसे कड़ी सजा दी जाती थी|
सितंबर में जब कर्नाटक में स्कूलों में मुस्लिम लडकियाँ स्कूल यूनिफार्म का उलंघन कर हिजाब पहन कर आने लगी, ठीक उसी समय हिजाब नहीं पहनने पर पकड़ी गई ईरानी युवा लडकी महशा अमीनी की पुलिस हिरासत में मौत हो गई| तब से ईरान में महिलाएं हिजाब के खिलाफ आन्दोलन कर रही हैं, वे सार्वजनिक तौर पर अपने बाल काट रही हैं और हिजाब को जला रही हैं| इस्लामिक क़ानून के मुताबिक़ शुरू में ईरानी इस्लामिक पुलिस ने आंदोलनकारी मुस्लिम महिलाओं पर जम कर अत्याचार किए| लेकिन अमीनी के बलिदान के दो महीने बाद आखिरकार ईरान सरकार को झुकना पड़ा| ईरान सरकार ने हिजाब के क़ानून की समीक्षा करने और गश्त ए इरशाद पुलिस को भंग करने का एलान किया है| एलान मंत्री नहीं किया, बल्कि अटार्नी जनरल की तरफ से किया गया है| ईरान के आंदोलनकारी अटार्नी जनरल के इस एलान को भ्रम पैदा करने वाला एलान मानते हैं| आन्दोलनकारियों ने ईरान से इस्लामिक राज खत्म होने तक आन्दोलन जारी रखने का एलान किया है| यानि आन्दोलन अब और बड़ा स्वरूप ले चुका है, जहां भारत के मुल्ला मौलवी शरीयत का हवाला दे कर यूनिफार्म सिविल कोड की मुखाल्फित करते हैं, वहीं इस्लामिक देशों में शरीयत पर आधारित इस्लामिक राज खत्म करने की मांग शुरू हो गई है|
अब ईरान सरकार के हिजाब क़ानून की समीक्षा के एलान को भारतीय सन्दर्भ में देखते हैं, ईरान की ओर से हिजाब क़ानून की समीक्षा का एलान करने से एक बात तो साबित हो गई है कि हिजाब इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है, जैसा कि भारत के इस्लामिक स्कालर और कट्टरपंथी मुल्ला मौलवी दावा कर रहे थे| हालांकि भारत के मुल्ला मौलवियों ने कभी भी उन मुस्लिम महिलाओं के खिलाफ फतवा जारी नहीं किया, जो हिजाब नहीं पहनती| ईरान के फैसलों का भारत की सुप्रीमकोर्ट में चल रहे हिजाब के मुकद्दमे पर क्या असर पड़ेगा, यह तो अभी नहीं कहा जा सकता, लेकिन अपने ही परिवारों में खुलेपन के लिए जद्दोजहद कर रही मुस्लिम महिलाओं को वैसा ही नैतिक बल जरूर मिलेगा, जैसा तीन तलाक का इस्लामिक क़ानून रद्द होने पर मिला है|
कई मुस्लिम स्कालर कहते हैं कि कुरआन में हिजाब या बुर्के का कहीं जिक्र नहीं है, लेकिन इस्लाम में मुसलमानों पर जो इस्लामिक नियम कानून लागू किये जाते हैं, उनका इस्लामिक संदर्भ हमेशा कोई न कोई मौलवी या मौलाना बताता है| मुल्ला मौलवी इस्लाम के नाम पर जैसा चाहे, वैसा नियम कानून मुसलमानों पर लागू कर देते हैं| तीन तलाक भी ऐसा ही इस्लामिक क़ानून था, जिसे मुल्ला मौलवी तोड़ मरोड़ कर लागू कर रहे थे| आम मुसलमान मौलवियों की कही बात को अल्ला का हुक्म मान कर आंख मूंदकर मान लेता है| ईरान में भी यही हो रहा था, लेकिन मुसलमानों की ओर से ही जब इसका विरोध शुरु होता है तो ऐसे गढे गये इस्लामिक सिद्धांत रातों रात गायब भी हो जाते हैं| जैसे इस समय ईरान में हो रहा है| दो महीने पहले तक वहां हिजाब इस्लाम का इतना अनिवार्य हिस्सा था, कि उसे लागू करने के लिए मजहबी पुलिस गठित कर दी गयी थी, लेकिन जैसे ही इसके खिलाफ आंदोलन भड़का, हिजाब के नाम पर महिलाओं का सिर ढंकना इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं रह गया| अब इस्लामिक प्रशासन खुद उसमें सुधार करने के सुझाव दे रहा है|
अगर ईरान में समीक्षा के बाद हिजाब का क़ानून वापस ले लिया गया, या हिजाब पहनने में किसी तरह की छूट दे दी गई तो भारत के कट्टरपंथी मुल्ला मौलवियों को बड़ा झटका लगेगा और भारतीय मुस्लिम महिलाओं के हौंसले भी बुलंद होंगे, जो इक्कीसवीं सदी में खुली हवा के लिए छटपटा रही हैं| खासकर तब जब देश की मौजूदा मोदी सरकार उनकी आज़ादी के लिए उनके साथ खडी है, वैसे किसी इस्लामिक देश में जब इस्लाम के नाम पर कोई व्यवस्था लागू कर दी जाती है तब उससे पीछे नहीं हटा जाता| अब देखते हैं कि ईरान सरकार क्या फैसला करती है और उस का भारत जैसे उन देशों पर क्या असर होगा, जो इस्लामिक देश नहीं हैं, लेकिन कट्टरपंथी मुसलमान उन देशों में भी इस्लामिक क़ानून और इस्लामिक परंपराओं को लागू करने का दबाव बना रहे हैं|
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