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- रमेश शर्मा
दुनिया में ऐसा कोई देश नहीं जो कभी न परतंत्रता के अंधकार में न डूबा हो । उनमें अधिकांश का स्वरूप ही बदल गया। उन देशों की अपनी संस्कृति का आज कोई अता पता नहीं है। लेकिन दासत्व के लंबे अंधकार के बाद भी भारत की संस्कृति पुष्पित और पल्लवित हो रही है। तो यह ऐसे लाखों बलिदानियों के कारण है, जिन्हें सत्ता की कोई चाहत नहीं थी । उनका संघर्ष राष्ट्र, संस्कृति, स्वत्व और स्वाभिमान की रक्षा के लिए था। ऐसा ही बलिदान क्राँतिकारी खुदीराम बोस का था। जो सोलह वर्ष की आयु में अपनी पढ़ाई छोड़कर क्राँतिकारी बने और उन्नीस वर्ष की आयु पूरी करने से पहले ही फांसी पर चढ़ गये। अमर बलिदानी क्रान्ति कारी खुदीराम बोस का जन्म बंगाल के मिदनापुर जिले के ग्राम बहुबैनी में 3 दिसंबर 1889 को हुआ था।
बंगाल विभाजन का विरोध आरंभ हुआ और पुलिस ने इस विरोध को शक्ति से दबाना शुरू किया। संघर्ष और दमन के चलते पूरे बंगाल में तनाव हो गया। किशोर वय खुदीराम बोस पढ़ाई छोड़ कर इस आँदोलन में जुड़ गये । उन्होंने रिवोल्यूशनरी पार्टी की सदस्यता ले ली। वे भले पन्द्रह सोलह वर्ष के थे लेकिन उनकी कदकाठी बहुत दुबली थी इस कारण वे अपनी आयु चार पाँच साल छोटे लगते थे। इस कारण पार्टी ने उन्हें पर्चे बांटने, पिस्तौलें और संदेश यहाँ वहाँ भेजने के काम में लगाया। इसका आरंभ वंदेमातरम के पोस्टर बांटने और उन्हें चिपकाने के काम से हुआ। वे एक बार खुदीराम पोस्टर चिपकाते हुये पकड़े गए आयु से कम दिखने के कारण थानेदार ने छोटा बच्चा समझा। दो चार चांटे लगाये और चेतावनी देकर छोड़ दिया। पर पुलिस के चाँटे और भविष्य का भय किशोरवय खुदीराम बोस को डिगा न सकी। समय के साथ आगे बढ़े और पोस्टर लगाने के साथ बम बनाना और फेकना सीखा। खुदीराम ने पहला बम 28 फरवरी 1906 को उस ट्रेन पर फेका जिसमें वायसराय निकलने वाले थे। लेकिन निशाना चूक गया। खुदीराम बंदी बना लिये गये लेकिन वे कैद से निकल भागे। कुछ दिन अज्ञातवास में रहे और फिर वे क्राँतिकारी युवकों के दल ‘युगान्तर’ से भी जुड़ गये। उन दिनों बंगाल में एक अंग्रेज मजिस्ट्रेट किंग्जफोर्ड पदस्थ हुआ वह क्राँतिकारी आँदोलन से ही नहीं, अंग्रेजों के विरुद्ध की जाने वाली किसी भी असहमति पर कठोर यातनाएं देता था । पहले अदालत में अपमानित करता और फिर जेल में यातना देने के खुलेआम आदेश करता था । युगान्तर पार्टी ने इस मजिस्ट्रेट किंग्जफोर्ड को रास्ते से हटाने का निर्णय लिया। किसी भेदिये से इसकी खबर सरकार को लग गयी। इसलिये उस मजिस्ट्रेट का तबादला मिदनापुर से मुजफ्फरपुर कर दिया गया। मुजफ्फरपुर इन दिनों बिहार में है। पहले यह बंगाल में ही हुआ करता था। युगान्तर पार्टी ने उस मजिस्ट्रेट को वहीं जाकर सबक सिखाने का निर्णय लिया। इस काम के लिये खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी को चुना गया। दोनों क्राँतिकारी मुजफ्फरपुर पहुँचे। उन्होंने उसकी दिनचर्या का पता लगाया। और 20 अप्रैल 1908 को उसे क्लब के बाहर बम से उड़ाने की योजना बनाई। बम फेकने का काम खुदीराम बोस को दिया गया जबकि प्रफुल्ल चाकी पिस्तौल लेकर चला। ताकि यदि वह मजिस्ट्रेट बम से बच जाय तो गोली मारी जा सके। निर्धारित तिथि पर रात साढ़े आठ बजे मजिस्ट्रेट की बग्घी निकली। लेकिन उसमें मजिस्ट्रेट किंग्जफोर्ड नहीं था। बग्घी में दो ब्रिटिश महिलायें मिसेज केनेडी और उसकी बेटी बैठीं थीं। मजिस्ट्रेट ने क्यों अपनी बग्घी बदली और क्यों अपनी बग्घी में दो यूरोपियन महिलाओं को बिठाकर बाहर भेजा। इस रहस्य से कभी पर्दा न उठ सका। अनुमान है इस हमले की सूचना भी किसी विश्वासघाती ने दे दी होगी। जो हो बग्गी प्रतिदिन के नियत समय पर ही पहुँची। और अपने निर्धारित स्थान पर ही रुकी। बग्घी की प्रतीक्षा दोनों क्राँतिकारी कर रहे थे। जैसे ही बग्घी उनकी पहुँच के भीतर आयी, खुदीराम ने बम फेक दिया। बम निशाने पर लगा। बग्घी के चिथड़े उड़ गये। बम कितना जबरदस्त था इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसकी आवाज तीन मील तक सुनी गयी। पूरा इलाका दहल गया। दोनों क्राँतिकारी भागे । भागकर वैनी स्टेशन आये। क्लब से लेकर स्टेशन तक पूरी नाकाबंदी थी। दोनों क्राँतिकारी क्लब से निकल आये । पर स्टेशन पर न बच सके। पुलिस से घिर गये। अपने बचने का कोई मार्ग न देख प्रफुल्ल चाकी ने पिस्टल से स्वयं को गोली मार ली। खुदीराम बंदी बना लिये गये। उन्हें जेल में भारी प्रताड़ना दी गयी ताकि वे अपने अन्य क्राँतिकारियों के नाम बता दें। पर खुदीराम ने मुँह न खोला। और अंततः 11 अगस्त 1908 को उन्हें मुजफ्फरपुर जेल में फाँसी दी गयी। तब उनकी आयु पूरे उन्नीस वर्ष भी न थी । वे श्रीमद्भगवद्गीता का नियमित पाठ करते थे और फाँसी के समय भी वे गीता अपने साथ ले गये थे।