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कारगिल वीर जवानों के बलिदान का मोल क्या हम समझ पाए

  • डॉ. प्रितम भि. गेडाम
    अमर जवान का नाम आते ही हमारे जेहन में जो तस्वीर उभरकर आती है वह साहस, जुनून, अनुशासन, देशभक्ति से भरपूर देश के रक्षक की छवि होती है। देश में सबसे ज्यादा सम्मान देश के वीर जवानों के लिए ही होता है। ये जवान किसी भी परिस्थिति से लड़ने के लिए सर्वदा तत्पर रहते हैं, चिलचिलाती गर्मी, मूसलाधार बारिश, जमा देने वाली ठंड में घर-परिवार से दूर सैनिक अपने लक्ष्य पर डटे रहते हैं। इसलिए वीर जवानों के लिए हमारा सिर हमेशा गर्व से ऊँचा होता हैं।
    आज ही के दिन भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सैनिकों को धूल चटाते हुए कारगिल की चोटियों पर तिरंगा फहराया था। लद्दाख में उत्तरी कारगिल जिले की पर्वत चोटियों पर पाकिस्तानी सेना को वर्ष 1999 में उनके कब्जे वाले स्थानों से खदेड़कर भारत देश ने ऐतिहासिक जीत हासिल की थी। कारगिल युद्ध के उन नायकों की याद में हर साल 26 जुलाई को “कारगिल विजय दिवस” मनाया जाता है। यह दिन हर भारतीय के लिए गर्व का है। कारगिल युद्ध 3 मई 1999 से 26 जुलाई 1999 तक चला, जिसमें देश के 527 वीर जवान शहीद और 1,363 घायल हुए।
    देश का जवान मौत को सामने देखकर भी अपने फर्ज के लिए, देश के लिए, जनता के लिए ख़ुशी से जान न्योछावर कर देता है ताकि देश में अमन चैन बना रहें और मातृभूमि की, देश की रक्षा हो, देश सुरक्षित रहे। लेकिन देश के भीतर समाज, घर-परिवार, रिश्ते-नाते, जान-पहचान में आज हम देखते हैं कि सब खुद में व्यस्त है, खुद के लिए जीते हैं। कथनी और करनी में कभी एक नहीं होते, सलाह और ज्ञान देने में हमेशा आगे रहते हैं लेकिन जब मुश्किल हालात हो तो अपने भी भाग खड़े होते हैं।
    हआज लोग स्वार्थ में इतने अंधे हो चुके है कि खुद के एक रूपये के फायदे के लिए लोगों का लाखों का नुकसान करने के लिए भी तैयार रहते है। लोगों को स्लो पॉइजन के तौर पर मिलावटखोरी का जहर धड्डल्ले से बांटा जा रहा हैं। समाज में इंसानियत तेजी से विलुप्त हो रही है, लोग केवल खुद के बारे में सोचते हैं, फिर ऐसे समाज में देश के लिए अपनी जान कुर्बान करने की बात तो बहुत दूर है। अति दुर्गम क्षेत्र में अत्यल्प साधनों के साथ बगैर शिकायत के अपने कार्य को बखूबी अंजाम देना देश के जवानों से सीखना चाहिए।
    समाज में छोटी-छोटी बात पर लोग मरने-मारने को उतारू रहते हैं, भेदभाव करते हैं, तुरंत उग्र हो जाते है। समझदारी, नैतिकता, एकता, भाईचारा, सर्वधर्म समभाव और पूरा देश एक है, यह भावना और व्यवहार देश के जवान में नजर आता हैं। कैसी भी परिस्थिति हो, वीर जवान कर्त्तव्य, निष्ठा, नियम, अनुशासन और आदेश का दृढ़ता से पालन करते हुए कर्मभूमि पर डटे रहते हैं। उपजीविका के लिए नौकरी, काम-धंधा तो सभी करते हैं, काम के बदले में मेहनताना लेते हैं, लेकिन देश की रक्षा की खातिर जान न्योछावर करने वाले वीर जवान और कहाँ देखने मिलते हैं। सौ बात की एक बात कि वीर जवानों के कारण ही हम और हमारा परिवार, समाज चैन की साँस लेता हैं।वे हैं इसलिए हम हैं।
    अनेक वीर जवान देश के लिए शहीद हो जाते हैं, फिर भी उनके माता-पिता अपने दूसरे बच्चों को भी सेना में भेजना चाहते हैं ताकि वे भी देश की रक्षा कर सकें। ऐसे वीर सपूतों के माता-पिता भी किसी वीर सैनिक से कम नहीं हैं, देश के लिए ये हौसला, जज्बा, समर्पण की भावना बहुत बड़ी बात हैं, देश पहले बाद में घर-परिवार, समाज आता है। काश ये सोच हर देशवासी की हो तो देश में कोई समस्या ही नहीं होगी।
    असम रेजिमेंट के पूर्व सूबेदार ने कहा कि मैंने कारगिल युद्ध लड़ा, भारतीय शांति सेना का हिस्सा बनकर श्रीलंका में भी रहा, देश की रक्षा की। आज सेना से रिटायर होने के बाद मैं अपनी पत्नी, घर, गांव की रक्षा नहीं कर सका, मुझे बहुत दुख है। क्या आज की युवा पीढ़ी के आगे कोई लक्ष्य नहीं है। वह किस दिशा में जा रही है। समाज और देश के प्रति हम अपने कर्तव्यों को क्यों भूल रहे हैं। समाज में लगातार बढ़ती समस्याओं के लिए अधिकतर जिम्मेदार हम खुद हैं। हम खुद के लिए नहीं, परिवार,समाज व देशके लिएजीना सीखें।

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