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- प्रो. (डॉ.) संजय द्विवेदी,
भारतीय संस्कृति में गंगा को मां का दर्जा दिया गया है। एक ऐसी मां, जो अपने बच्चों का भरपूर ख्याल रखती है। लेकिन, अगर मां ही स्वस्थ नहीं होगी, तो वह अपने बच्चों का ध्यान कैसे रख पाएगी। जीवनदायिनी मां गंगा के बिगड़ते स्वास्थ्य में, सबसे ज्यादा उसकी संतानों यानि हम इंसानों का ही सबसे बड़ा हाथ रहा है। हम अपने लालच और लापरवाही के चलते लगातार उसकी उपेक्षा करते गए और उसकी हालत बिगड़ती गई। लेकिन, 2014 में केंद्र में एक नई और सबसे मजबूत सरकार का गठन, सबको वर देने वाली मां गंगा के लिए स्वयं जैसे काशीपति भगवान शिव के वरदान की तरह रहा और प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने वाराणसी लोकसभा क्षेत्र से चुने जाने के तुरंत बाद, वाराणसी जाकर गंगा को प्रणाम करते हुए कहा, ‘मां गंगा की सेवा करना मेरी नियति है’ और मां गंगा को उनका खोया गौरव एवं मूल स्वरूप वापस लौटाने का संकल्प लिया। इसी प्रतिबद्धता को प्रधानमंत्री ने कुछ समय बाद फिर दोहराया।
2014 में, न्यूयॉर्क में मैडिसन स्क्वायर गार्डन में भारतीय समुदाय को संबोधित करते हुए श्री मोदी ने उन्हें गंगा नदी के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व के बारे में बताते हुए कहा था कि देश की 40% आबादी गंगा नदी पर निर्भर है। अगर हम इसे साफ करने में सक्षम हो गए तो यह इस आबादी के लिए एक बड़ी मदद साबित होगी। अतः गंगा की सफाई एक आर्थिक एजेंडा भी है। प्रधानमंत्री जी का यह संकल्प 2014 में ही साकार होना शुरू हो गया, ‘नमामि गंगे’ नामक एक एकीकृत गंगा संरक्षण कार्यक्रम के रूप में। गंगा नदी के प्रदूषण को समाप्त करने और नदी को पुनर्जीवित करने के उद्देश्य के साथ आरंभ होने वाले इस कार्यक्रम के लिए अगले पांच सालों के लिए निर्धारित बजट को चार गुना बढ़ाकर बीस हजार करोड़ रुपये कर दिया गया। सौ प्रतिशत केंद्रीय भागीदारी वाली इस कार्ययोजना को केंद्रीय मंत्रीमंडल ने भी अपनी मंजूरी दे दी।
‘नमामि गंगे’ कार्यक्रम : जून 2014 में केंद्र सरकार द्वारा फ्लैगशिप कार्यक्रम के रूप में अनुमोदित ‘नमामि गंगे’ कार्यक्रम जल संसाधन मंत्रालय, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग तथा जल शक्ति मंत्रालय के अंतर्गत संचालित है। इसका क्रियान्वयन राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) और इसके राज्य कार्यक्रम प्रबंधन समूहों द्वारा किया जाता है। एनएमसीजी माननीय प्रधानमंत्री जी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय गंगा परिषद की कार्यान्वयन शाखा के रूप में कार्य करता है, जिसका गठन गंगा नदी के कायाकल्प, संरक्षण और प्रबंधन के उद्देश्य से किया गया था।
इसके प्रमुख लक्ष्यों में मौजूदा सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट को पूर्व अवस्था में लाना और सीवेज के प्रवाह की जांच के लिये रिवरफ्रंट के निकास बिंदुओं पर प्रदूषण को रोकने हेतु तत्काल अल्पकालिक कदम उठाना, सतही प्रवाह और भूजल को बढ़ाना व बनाए रखना, प्राकृतिक मौसम परिवर्तन में बदलाव के बिना जल प्रवाह की निरंतरता बनाए रखना, क्षेत्र की प्राकृतिक वनस्पतियों को पुनर्जीवन और उनका रखरखाव, गंगा नदी बेसिन की जलीय जैव विविधता के साथ-साथ तटवर्ती जैव विविधता का संरक्षण व उन्हें पुनर्जीवित करना और इस सब को हासिल करने के लिए नदी के संरक्षण, कायाकल्प और प्रबंधन की प्रक्रिया में जनता की भागीदारी सुनिश्चित करना शामिल हैं। इस दिशा में गंगा की सफाई, अपशिष्ट उपचार संयंत्रों की स्थापना तथा नदी की जैविक विविधता के संरक्षण के लिये वर्ष 2014 में लिए स्वच्छ गंगा कोष का गठन किया गया था।
समन्वय का उत्कृष्ट उदाहरण : भौगोलिक दृष्टि से बहु-क्षेत्रीय और स्वभाव में बहु-आयामी गंगा संरक्षण की चुनौती से निपटने में बहुत से लोगों की महत्वपूर्ण भूमिका को ध्यान में रखते हुए इस बात का खास ध्यान रखा गया है कि कार्ययोजना की तैयारी एवं इस पर अमल में सभी की सहभागिता हो और विभिन्न मंत्रालयों के बीच और केंद्र और राज्य में अच्छा समन्वय हो, ताकि हर स्तर पर निगरानी तंत्र को बेहतर बनाया जा सके। इसके लिए देश में विभिन्न केंद्रीय मंत्रालयों के साथ एमओयू पर हस्ताक्षर किये गए हैं।
परस्पर समन्वय और सामंजस्य के इसी विचार को सार्थक करते हुए भारत सरकार का पर्यटन मंत्रालय गंगा के किनारे वाले क्षेत्रों में पर्यटन सर्किट के विकास के लिये एक विस्तृत और दीर्घकालिक योजना पर काम कर रहा है तो कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय गंगा के तटवर्ती इलाकों में ऑर्गेनिक फार्मिंग और नेचुरल फार्मिंग कॉरिडोर के निर्माण की दिशा में प्रयास कर रहा है और जल उपयोग दक्षता में सुधार के साथ पर्यावरण हितैषी कृषि को बढ़ावा दे रहा है। इनके अलावा आवासन एवं शहरी मामले मंत्रालय स्वच्छ भारत मिशन 2.0 और अमृत 2.0 (कायाकल्प और शहरी परिवर्तन के लिये अटल मिशन) के अंतर्गत शहरी नालों की मैपिंग तथा गंगा शहरों में ठोस और तरल कचरे के प्रबंधन पर विशेष ध्यान दे रहा है। इसी प्रकार पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय भी गंगा बेल्ट में वनीकरण गतिविधियों और ‘प्रोजेक्ट डॉल्फिन’ को बढ़ावा देने की एक व्यापक योजना पर काम कर रहा है। इस कार्यक्रम में युवाओं और जनता को साथ लेकर गंगा नदी के संरक्षण और प्रदूषण मुक्ति की दिशा में योगदान के माध्यम से राष्ट्रीय एकता की भावना को बढ़ावा देने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
चरणबद्ध क्रियान्वयन:कार्यक्रम को क्रियान्वयन की दृष्टि से तीन प्रकार की गतिविधियों में बांटा गया है। एक, ऐसी आरंभिक गतिविधियां, जिन्हें तुरंत लागू किया जा सके। दूसरी, ऐसी गतिविधियां, जिन्हें पांच सालों के भीतर लागू किया जाना है और तीसरी ऐसी गतिविधियां, जिन्हें दस साल के भीतर लागू किया जाना है। नमामि गंगे मिशन के तहत उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान राज्यों में 48 सीवेज प्रबंधन परियोजनाएं कार्यान्वित की जा रही हैं और 98 सीवेज परियोजनाएं पूरी की जा चुकी हैं। औद्योगिक प्रदूषण की समस्या के समाधान के लिए कार्यक्रम में गंगा के किनारे स्थित प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों को कहा गया है कि गंदे पानी की मात्रा कम करें या इसे पूर्ण तरीके से समाप्त करें।