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समृद्धि पर नहीं, खुद पर निर्भर करती है खुशी!

  • सोनम लववंशी
    खुश हो जाइए, क्योंकि आज (20 मार्च) ‘अंतर्राष्ट्रीय प्रसन्नता दिवस’ है। आप अभाव में हो, तनाव में हो, अवसाद ने आपको घेर रखा हो। फिर भी आप दिनभर हंसिए और खुशियां मनाइये, क्योंकि जब आप खुश होते हैं तो आप दूसरी बीमारियों से आसानी से लड़ सकते हैं और आपका दिमाग सही तरीके से काम करता है। अपने दैनिक जीवन में दया और ध्यान को शामिल करके, हम अधिक सकारात्मक और पूर्ण विकसित हो सकते हैं। आंकड़ों की गवाही है कि प्रसन्नता यानी ख़ुशी के मामले में हमारा देश लगातार पिछड़ता जा रहा है। ‘विश्व प्रसन्नता दिवस’ मनाने की शुरुआत 2013 में हुई थी। उस समय हम खुशियों की रैंक में 111 वें पायदान पर थे। 2022 में भारत 149 देशों की सूची में प्रसन्नता के स्तर में 136 वीं पायदान पर पहुंच गया। 25 स्थानों की गिरावट यह बताने के लिए काफी है कि खुशियों की राह में हम कितना पिछड़ गए। आश्चर्य की बात है कि पाकिस्तान, चीन और बांग्लादेश जैसे देशों से भी हमारी खुशी निचले पायदान पर है। कहने को हम दुनिया की पांचवी बड़ी अर्थव्यवस्था हैं। दुनिया में दूसरी सबसे बड़ी आबादी हमारे देश की है, पर खुशियों के पैमाने में हम बहुत निचले स्तर पर हैं। भूटान ने 1972 में ‘हैप्पीनेस इंडेक्स’ का मॉडल दिया था! वहाँ जीडीपी के बजाए लोगों की खुशियों को देश की समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। जबकि, अभी तो वो फार्मूला ही नहीं बना जो लोगों की खुशी मापने का मीटर हो! दुनिया में कई जगह लोगों के जीवन में खुशहाली लाने का काम हो रहा है। लेकिन, खुशहाली लाने के लिए सबसे पहले सरकार को अपनी जिम्मेदारियां निभाना होती है। वो सारे प्रयास करना होते हैं, जिससे लोगों की व्यक्तिगत मुसीबतें खत्म हों और वे खुश हों! सरकारी गुदगुदी से कोई खुलकर कैसे हँस सकेगा! जिनके जीवन में तनाव, अभाव और हर वक्त भविष्य की चिंता हो, उन्हें अंतर्मन की खुशी कैसे दी जा सकती है! भूटान के अलावा वेनेजुएला, यूएई में भी ये प्रयोग हो चुके हैं। वास्तव में खुशी को किसी परिभाषा में नहीं समेटा जा सकता है। हिन्दू शास्त्रों में भी खुशी को परम आनंद कहा गया है। छठवीं सदी के दार्शनिक और बुद्धिजीवी आदिशंकराचार्य ने कहा था ‘अल्पकालिक वस्तुओं के प्रति उदासीनता और आंतरिक चेतना के साथ संबंध ही सच्ची प्रसन्नता है।’ वहीं 350 ईसा पूर्व लिखे गए ‘निकोमैचियन एथिक्स’ में अरस्तू ने कहा था ‘धन, सम्मान, स्वास्थ्य या दोस्ती के विपरीत, खुशी ही एकमात्र ऐसी चीज है, जो मनुष्य अपने लिए चाहता हैं।’ अरस्तू ने तर्क दिया था कि अच्छा जीवन उत्कृष्ट तर्कसंगत गतिविधि का जीवन है। भगवान श्री कृष्ण ने भी गीता में कहा ही है कि फल की आशा के बिना निरपेक्ष भाव से किया गया कर्म ही सर्वोत्तम है। यह सच भी है कि जहां स्वार्थ होगा वहां छल कपट भी होगा। स्वार्थ से परे ही सच्चा सुख प्रसन्नता की राह सुगम बनाता है।
    हमने घर तो मजबूत बना लिए पर रिश्ते की डोर बहुत ही कमजोर होती जा रही है। जहां कभी एक छत के नीचे पूरा परिवार ख़ुशी मनाता था। आज हम अपने ही कमरे में कैद होकर रह गए है! आज दुनिया ‘ग्लोबल विलेज’ बनती जा रही है। चंद पलों में हम मीलों का सफर तय करने में सक्षम हो गए है, सूचना के बड़े बड़े माध्यम बनाने में सफलता हासिल कर ली है, लेकिन दिलों में दर्द की गहरी खाई बना बैठे हैं। आज हमें जरूरत है कि हम अपनी खुशी के लिए किसी और पर निर्भर न रहें। जिस दिन हम सही गलत का निर्णय करने में सक्षम हो जाएंगे। भौतिकवाद से परे मानवता की राह पकड़ लेंगे तो उससे अच्छी खुशी कोई और नहीं होगी।

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