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- प्रहलाद सबनानी
भारत में हाल ही के वर्षों में गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले नागरिकों की संख्या में आई भारी कमी के संदर्भ में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक एवं विकसित देशों के कई वित्तीय एवं आर्थिक संस्थानों ने भारत की आर्थिक नीतियों की मुक्त कंठ से सराहना की है। यह सब दरअसल भारत में तेज गति से हुए वित्तीय समावेशन के चलते सम्भव हुआ है। याद करें वर्ष 1947, जब देश ने राजनैतिक स्वतंत्रता प्राप्त की थी, उस समय देश की अधिकतम आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने को मजबूर थी। जबकि, भारत का इतिहास वैभवशाली रहा है एवं भारत को ‘सोने की चिड़िया’ कहा जाता था। परंतु, पहिले अरब से आक्रांताओं एवं बाद में अंग्रेजों ने भारत को जमकर लूटा तथा देश के नागरिकों को गरीबी की ओर धकेल दिया। भारत में राजनैतिक स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत से ‘गरीबी हटाओ’ के नारे तो बहुत लगे परंतु, गरीबी नहीं हटी। ‘गरीबी हटाओ’ के नारे के साथ राजनैतिक दलों ने कई बार सता हासिल की किंतु देश से गरीबी हटाने के गम्भीर प्रयास शायद कभी नहीं हुए और गरीब वर्ग को वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा।
भारत में प्रधानमंत्री जनधन योजना को वर्ष 2014 में लागू किया गया जिसके माध्यम से आम नागरिकों के बैंकों में बचत खाते खोले गए, आवश्यकता आधारित ऋण की उपलब्धता सुनिश्चित की गई, धन के प्रेषण की सुविधा, बीमा तथा पेंशन सुविधा भी उपलब्ध कराई गई। इस योजना के अंतर्गत जमाराशि पर ब्याज मिलता है, हालांकि बचत खाते में कोई न्यूनतम राशि रखना आवश्यक नहीं है। एक लाख रुपए तक का दुर्घटना बीमा भी मिलता है। साथ ही, इस योजना के माध्यम से दो लाख रुपए का जीवन बीमा उस लाभार्थी को उसकी मृत्यु पर सामान्य शर्तों पर मिलता है।
भारत में प्रधानमंत्री जनधन योजना को सफलता पूर्वक लागू करने के बाद प्रत्यक्ष लाभ अंतरण योजना को भी लागू किया गया जिसके अंतर्गत केंद्र सरकार एवं विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा गरीब वर्ग के हितार्थ चलाई जा रही विभिन्न सरकारी योजनाओं के अंतर्गत प्रदान की जाने वाली सहायता की राशि को सीधे ही हितग्राहियों के बचत खातों में जमा कर दिया जाता है। इससे विभिन्न योजनाओं के लाभार्थियों को 100 प्रतिशत लाभ की राशि सीधे ही उनके हाथों में पहुंच जाती है। प्रत्यक्ष लाभ अंतरण योजना के अंतर्गत, वर्ष 2013 के बाद से 31 मार्च 2022 तक, 24.8 लाख करोड़ रुपए की राशि सीधे ही लाभार्थियों के बचत खातों में जमा की जा चुकी है, इसमें अकेले वित्तीय वर्ष 2021-22 में ही 6.3 लाख करोड़ रुपए की राशि लाभार्थियों के बचत खातों में हस्तांतरित की गई थी। वर्ष 2014 के पूर्व तक जब इन लाभार्थियों के बचत खाते विभिन्न बैंकों में नहीं खुले थे तब तक कांग्रेस एवं अन्य सरकारों के शासनकाल के दौरान विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत प्रदान की जाने वाली सहायता की राशि सामान्यतः नकद राशि के रूप में इन लाभार्थियों को उपलब्ध कराई जाती थी।
आपको शायद ध्यान होगा कि एक बार देश के प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री राजीव गांधी जी ने कहा था कि केंद्र सरकार से विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत प्रदान की जाने वाली सहायता की राशि के एक रुपए में से केवल 16 पैसे ही लाभार्थियों तक पहुंच पाते हैं। शेष 84 पैसे इन योजनाओं को चलाने वाले तंत्र की जेब में पहुंच जाते हैं। अब आप स्वयं आंकलन करें कि यदि बैंक में 50 करोड़ लाभार्थियों के बचत खाते नहीं खुले होते और यदि उक्त वर्णित केवल 8 वर्षों के दौरान उपलब्ध कराई गई 25 लाख करोड़ रुपए से अधिक की सहायता राशि केंद्र सरकार द्वारा विभिन्न लाभार्थियों को नकद राशि के रूप में उपलब्ध कराई जाती तो इन लाभार्थियों के पास केवल 4 लाख करोड़ रुपए की राशि ही पहुंच पाती एवं शेष 21 लाख करोड़ रुपए की राशि इन योजनाओं को चलाने वाले तंत्र के पास ही रह जाती। अब आप आगे एक और कल्पना कर लीजिये कि पिछले 70 वर्षों के दौरान कितनी भारी भरकम राशि इन गरीब हितग्राहियों तक नहीं पहुंच पाई होगी। इस राशि का आकार शायद आपकी कल्पना से भी परे है। सहायता की यह राशि यदि गरीबों तक पहुंच गई होती तो शायद हो सकता है कि देश से अभी तक गरीबी भी दूर हो चुकी होती। अब जब प्रत्यक्ष लाभ अंतरण योजना के अंतर्गत सहायता की राशि हितग्राहियों के खातों में सीधे ही पहुंच रही है तो देश से गरीबी भी तेजी से कम होती दिखाई दे रही है, जिसकी तारीफ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मुक्त कंठ से हो रही है।
पिछले 10 वर्षों के दौरान केंद्र सरकार एवं भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा भारतीय बैंकों के माध्यम से इस दृष्टि से बहुत ठोस कार्य किया गया है। न केवल 50 करोड़ से अधिक बचत खाते विभिन्न भारतीय बैंकों में खोले गए हैं बल्कि आज इन बचत खातों में 2 लाख करोड़ रुपए से अधिक की राशि भी जमा हो गई है और बचत की यह भारी भरकम राशि बैंकों द्वारा देश के आर्थिक विकास में उपयोग की जा रही है। इस प्रकार, भारत का गरीब वर्ग भी इन बैंक खातों के माध्यम से देश के आर्थिक विकास में प्रत्यक्ष रूप से अपना योगदान देता हुआ दिखाई दे रहा है।
भारी मात्रा में खोले गए इन बचत खातों के माध्यम से गरीब वर्ग के नागरिकों का बैकिंग सम्बंधी इतिहास भी धीरे-धीरे विकसित हो रहा है, जिससे इस वर्ग के नागरिकों को बैंकों द्वारा ऋण प्रदान करने में आसानी होने लगी है। केंद्र सरकार द्वारा बैकों के माध्यम से लागू की जा रही विभिन्न प्रकार की ऋण योजनाओं का लाभ भी अब गरीब वर्ग को मिलने लगा है। कोरोना महामारी के तुरंत बाद जब देश में स्थितियां सामान्य बनने की ओर अग्रसर हो रहीं थीं तब केंद्र सरकार ने खोमचा वाले, रेहड़ी वाले एवं ठेलों पर अपना सामान बेचकर छोटे-छोटे व्यवसाईयों द्वारा अपना व्यापार पुनः प्रारम्भ करने के उद्देश्य से एक विशेष ऋण योजना प्रारम्भ की थी। इस योजना के अंतर्गत उक्त वर्णित छोटे-छोटे व्यवसाईयों को बैंक द्वारा आसानी से ऋण प्रदान किया गया था क्योंकि इस वर्ग के नागरिकों के पूर्व में ही बैकों में बचत खाते खुले हुए थे। बैकों द्वारा यह ऋण बगैर किसी व्यक्तिगत गारंटी के प्रदान किया गया था। और हजारों की संख्या में छोटे-छोटे व्यवसाईयों ने निर्धारित समय सीमा में इस ऋण को अदा कर, पुनः बढ़ी हुई राशि के ऋण बैंकों से लिए थे और अपने व्यवसाय को तेजी से आगे बढ़ाया था। बैंकों में खोले गए बचत खातों से गरीब वर्ग को इस प्रकार के लाभ भी हुए हैं।