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- जयंतीलाल भंडारी
भारतीय उपभोक्ताओं के आशावादी होने का एक बड़ा कारण एक ओर भारत को रूस से कम मूल्य पर कच्चे माल की आपूर्ति होना है, वहीं भारत के द्वारा कच्चे तेल की आपूर्ति के स्रोतों में विविधता लाया जाना भी है। इन दिनों जब दुनिया इजराइल-हमास युद्ध, बढ़ती तेल कीमतों और गिरती वैश्विक विकास दर की चुनौतियों का सामना कर रही है, तब विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सर्वेक्षणों और रिपोर्टों में भारत की आर्थिकी की आशावादी तस्वीर उभरकर आना सुकूनदेह है।
हाल ही में भारतीय रिजर्व बैंक ने देश के उपभोक्ताओं और कारोबारों के विचारों का जो सर्वेक्षण प्रकाशित किया है, उसके निष्कर्षों में कारोबारी और वित्तीय विचार भारत में व्यापक तौर पर आर्थिक विस्तार को लेकर आशाजनक रुख दिखाते हैं। इस सर्वेक्षण में कहा गया है कि देश में खुदरा महंगाई में कमी आ रही है, औद्योगिक उत्पादन बढ़ रहा है, बेरोजगारी में कमी आई है, कर राजस्व में सुधार हुआ है।
जहां रोजगार की स्थिति में सुधार हुआ है वहीं स्वरोजगार को अपनाने वालों की तादाद तेजी से बढ़ी है। बैंक ऋण में अच्छी वृद्धि के मद्देनजर सबसे अधिक वृद्धि खुदरा और व्यक्तिगत ऋण में हुई है। इस सर्वेक्षण से संकेत मिल रहा है कि देश में उपभोक्ताओं के विचारों की नकारात्मकता कम हो रही है और अधिक से अधिक उपभोक्ता भविष्य में आमदनी बढ़ने के मामले में आत्मविश्वास से भरे हुए हैं।
भारतीय उपभोक्ताओं के आशावादी होने का एक बड़ा कारण एक ओर भारत को रूस से कम मूल्य पर कच्चे माल की आपूर्ति होना है, वहीं भारत के द्वारा कच्चे तेल की आपूर्ति के स्रोतों में विविधता लाया जाना भी है। पहले हम 27 देशों से कच्चे तेल का आयात करते थे, वहीं अब 39 देशों से कच्चे तेल का आयात कर रहे हैं। इस तरह अर्थव्यवस्था की समग्र तस्वीर व्यापक तौर पर आशावादी नजर आ रही है। गौरतलब है कि 10 अक्तूबर को अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) के द्वारा प्रकाशित विश्व आर्थिक परिदृश्य रिपोर्ट 2023 में भी भारतीय अर्थव्यवस्था की आशावादी तस्वीर प्रस्तुत की गई है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि चालू वित्त वर्ष 2023-24 में जहां वैश्विक विकास दर 3 फीसदी रहेगी, वहीं भारत की विकास दर 6.3 फीसदी रहेगी। साथ ही भारत दुनिया में सबसे तेज विकास दर वाला देश है।
इसी तरह पिछले दिनों 3 अक्तूबर को विश्व बैंक के द्वारा प्रकाशित इंडिया डेवलपमेंट अपडेट रिपोर्ट-2023 में भी कहा गया कि चालू वित्त वर्ष में निवेश और मांग के दम पर भारतीय अर्थव्यवस्था के 6.3 फीसदी की दर से बढ़ने का अनुमान है। रिपोर्ट में कहा गया कि सबसे तेज बढ़ती अर्थव्यवस्था में शामिल भारत की विकास दर जी-20 देशों के बीच दूसरे स्थान पर है और उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं में औसतन लगभग दोगुनी है। इस ऊंची विकास दर की वजह मजबूत आर्थिक मांग, मजबूत सार्वजनिक बुनियादी ढांचा निवेश और मजबूत वित्तीय क्षेत्र है। विश्व बैंक की तरह दुनिया की प्रसिद्ध क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों ने भी चालू वित्त वर्ष 2023-24 में भारत की तेज विकास दर के अनुमान प्रस्तुत किए हैं। एसएंडपी ने 6.6 फीसदी और फिच, एडीबी और आईसीडी ने 6.3 फीसदी के अनुमान लगाए हैं। इसी तरह रिजर्व बैंक ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा कि चालू वित्त वर्ष में भारत की विकास दर 6.5 फीसदी रहने की संभावना है।
चूंकि अमेरिका और रूस के साथ-साथ दुनिया के अधिकांश देशों के द्वारा भारत के साथ लगातार आर्थिक मित्रता के कदम बढ़ाए जा रहे हैं, ऐसे में भारत की सबसे ज्यादा विकास दर के साथ वैश्विक चुनौतियों के बीच भारत के लिए वैश्विक आर्थिक अवसर भी बढ़ने की संभावनाएं बनी हुई हैं।
इसमें कोई दो मत नहीं है कि इस वर्ष 2023 में जी-20 देशों की सफल अध्यक्षता के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था के तेज विकास की नई संभावनाएं निर्मित हुई हैं। जी-20 शिखर सम्मेलन के ऐतिहासिक सफल आयोजन से जहां दुनिया में भारत की डिजिटल अहमियत मजबूत हुई है, वहीं भारत की नई डिजिटल पूंजी देश की आर्थिक ताकत बनते हुए दिखाई दे रही है। अब भारत जी-20 देशों के साथ-साथ दुनिया के कई अन्य देशों के लिए डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (डीपीआई) विकसित करने की नई भूमिका में है। दुनिया के आठ देशों ने अपने यहां डीपीआई के विकास के लिए भारत से समझौते किए हैं। जी-20 से भारत विकासशील देशों, ग्लोबल साउथ के देशों और अफ्रीकी देशों के लिए और महत्वपूर्ण बना है।
निश्चित रूप से वर्तमान इजराइल-हमाम संकट और बढ़ते कच्चे तेल के मूल्यों के बीच भारत के लिए वैश्विक आर्थिक अवसरों के बढ़ने की संभावनाएं बनी हुई हैं। वैश्विक अवसरों को मुट्ठी में लेने के लिए कई बातों पर ध्यान देना होगा। चीन में मंदी और चाइना प्लस वन की रणनीति का लाभ लेने के लिए हमें इस बात पर ध्यान देना होगा कि इस समय भी चीन अगले कई दशकों के सबसे अहम कारोबारों के लिहाज से सर्वाधिक अनुकूल स्थिति में है। ऐसे में दुनिया का नया आपूर्तिकर्ता देश बनने के लिए भारत को अभूतपूर्व रणनीति के साथ आगे बढ़ना होगा। जहां भारत को दुनिया के नए वैश्विक आपूर्तिकर्ता और अफ्रीकी संघ में नए प्रभावी निर्यातक की भूमिका को मुट्ठी में लेना होगा, वहीं अभी से भारत को मध्यपूर्व यूरोप आर्थिक कॉरिडोर के तेज क्रियान्वयन के लिए रणनीतिक रूप से आगे बढ़ना होगा।
यद्यपि भारत राजकोषीय रूप से अनुशासित रहा है और देश के केंद्रीय बैंक ने भी महंगाई को कम करने के लिए तेजी से काम किया है, लेकिन अब महंगाई नियंत्रण पर ध्यान बनाए रखना जरूरी है।