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- श्वेता गोयल
भारत में प्रतिवर्ष एक जुलाई को डॉक्टरों के समर्पण और ईमानदारी के प्रति सम्मान जाहिर करने के लिए ‘राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस’ मनाया जाता है। केन्द्र सरकार द्वारा यह दिवस सबसे पहले वर्ष 1991 में मनाया था। भारत में जहां प्रतिवर्ष 1 जुलाई को चिकित्सक दिवस मनाया जाता है, वहीं कई दूसरे देशों में भी डॉक्टरों को सम्मान देने के लिए अलग-अलग तारीखों पर यह दिवस मनाया जाता है। अमेरिकी राज्य जॉर्जिया में पहली बार मार्च 1933 में डॉक्टर्स डे मनाया गया था। यह दिन चिकित्सकों को कार्ड भेजकर तथा मृत डॉक्टरों की कब्रों पर फूल चढ़ाकर मनाया जाता था। अमेरिका में यह दिवस 30 मार्च को, ईरान में 23 अगस्त को तथा क्यूबा में 3 दिसम्बर को मनाया जाता है। हमारे समाज में तो डॅाक्टरों को भगवान के समान यूं ही नहीं माना गया है। कोरोना महामारी से देश को उबारने में तो हमारे डॉक्टरों ने अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया था। ऐसे कठिन समय के दौरान डॉक्टर तथा स्वास्थ्य कार्यकर्ता जिस प्रकार दिन-रात कोविड मरीजों की देखभाल में जुटे रहे, उसके लिए पूरा समाज सदैव उनका ऋणी रहेगा। दरअसल न केवल भारत में बल्कि पूरी दुनिया में कोरोना महामारी के दौरान तो डॉक्टर फ्रंटलाइन योद्धा के रूप में सामने आए थे। महामारी के उस भयानक दौर में देवदूत बनकर लाखों लोगों का जीवन बचाने में डॉक्टरों ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। कोरोना काल में बहुत से डॉक्टरों ने अपनी जान की परवाह किए बिना लोगों को नया जीवन प्रदान किया था। उस दौरान मरीजों की जान बचाते-बचाते प्राणघातक कोरोना वायरस के कारण सैंकड़ों डॉक्टरों की मौत भी हुई थी लेकिन फिर भी डॉक्टर पूरी दुनिया को कोरोना महामारी से उबारने में जुटे नजर आए थे। डॉक्टरों की ही बदौलत महामारी के उस भयावह दौर में करोड़ों लोगों का जीवन बचाया जा सका था। सामान्य दिनों में भी डॅाक्टर लोगों को विभिन्न प्रकार की घातक बीमारियों से निजात दिलाने में पूरी ताकत लगा देते हैं। ऐसे में चिकित्सक दिवस हमें स्मरण कराता है कि डॅाक्टरों की हमारे जीवन में कितनी अहम भूमिका रहती है।