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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार के योगदान को न भूलें

  • अवधेश कुमार
    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रीनगर में कहा कि भारत हाई एस्पिरेश्श यानी उच्च अपेक्षाओं या आकांक्षाओं का देश हो गया है। यह देश की उपलब्धि है लेकिन इस कारण लोग सरकारों से अपेक्षाएं ज्यादा करते हैं। उन्होंने तीसरी बार सरकार की वापसी को एक बड़ी और ऐतिहासिक उपलब्धि भी बताया। प्रधानमंत्री मोदी भाजपा के शीर्ष नेता हैं और उनका वक्तव्य पार्टी की सामूहिक सोच तथा नीतियों को प्रतिबिंबित करता है। इस समय भाजपा अपने चुनावी प्रदर्शन को लेकर समीक्षा के दौर से गुजर रही है। इसमें उनका यह वक्तव्य महत्वपूर्ण हो जाता है। भाजपा के लिए निराशाजनक प्रदर्शन करने वाले राज्यों की कोई समीक्षा रिपोर्ट सार्वजनिक तौर पर आए तो पता चलेगा प्रदेश इकाई का एप्रोच क्या है। उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र पर लोगों का सबसे ज्यादा ध्यान है। इन दो राज्यों ने अपेक्षाओं के बिल्कुल उलट पार्टी को झकझोर देने वाला प्रदर्शन किया है।
    आप यदि धरातल पर काम करते हैं या सोशल मीडिया पर दृष्टि है तो देखेंगे कि इस समय भाजपा को लेकर सबसे ज्यादा नाराजगी और निराशा उनके स्वयं के कार्यकर्ता, स्थानीय नेता और प्रतिबद्ध समर्थक प्रकट प्रकट कर रहे हैं। उनका उबाल साफ दिखता है।भाजपा कार्यकर्ताओं, नेताओं और समर्थकों में ऐसे लोगों की संख्या छोटी-मोटी नहीं है जिनके विश्लेषणों, वक्तव्यों और व्यवहार में भावनायें आबद्ध होतीं हैं। भाजपा की यही सबसे बड़ी ताकत है तो इन्हें संभालना नेतृत्व के लिए वैसी ही चुनौती भी है। चुनाव में भाजपा के उम्मीद से कमजोर प्रदर्शन को देखते हुए अनुमान लगाया गया था कि ऐसे लोग अब शांत होंगे। ऐसा हुआ नहीं है। आश्चर्य की बात है कि काफी पढ़े लिखे और बड़े लोग भी इस समय विपक्ष की आलोचना या विरोध करने की जगह भाजपा नेतृत्व पर ही हमले कर रहे हैं। सरकारों में इनकी या इनके जैसे लोगों की व्यापक अनदेखी, उम्मीदवारों का उनकी कसौटी पर सही नहीं होना तथा केन्द्र व प्रदेशों में उच्च पदों पर बैठे अनेक चेहरों तथा उनकी भूमिकाओं में इनकी शिकायतों को स्वीकार करने में समस्या नहीं है । किंतु इनमें ज्यादातर लोग हिंदुत्व, हिंदुत्व अभिमुख राष्ट्र भाव ,आंतरिक एवं बाह्य सुरक्षा, धर्म, अध्यात्म ,संस्कृति, इतिहास, सामाजिक न्याय आदि के आधार पर अपना विचार और व्यावहारिक निर्धारित करते हैं। वास्तव में ये दोनों अलग-अलग पहलू हैं। साफ है कि भावावेश में इस सच को नजरअंदाज कर रहे हैं कि इन मामलों पर स्वतंत्रता के बाद किसी सरकार ने काम किया है तो वह नरेंद्र मोदी सरकार ही है। भविष्य में भी भारतीयत्व, हिंदुत्व और उससे जुड़े मुद्दों पर भूमिका निभाने की वर्तमान राजनीति में किसी से आशा की जा सकती है तो वह भाजपा ही है। स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस मायने में राजनीति में आज तक के सबसे प्रखर ,मुखर और निर्णय लेने वाले नेता बन चुके हैं। 2019 में अमित शाह द्वारा गृह मंत्रालय संभालने तथा सरकार में दूसरे निर्णायक की भूमिका में आने के बाद हिंदुत्व व भारतीयत्व के मामले में सरकार सोच और नीतियों में ज्यादा दृढ़ हुई है।
    यह तो संभव है कि जिस गति और परिमाण में समर्थकों का एक बड़ा समूह काम करने की अपेक्षा रखता था वह नहीं हुआ। सत्ता और संगठन से जुड़े अनेक नेता भी विचारधारा की कसौटी पर खरा उतरने नहीं दिखे। किंतु राजनीति के दूसरे दलों और नेताओं से तुलना करें तो तस्वीर बिल्कुल स्पष्ट हो जाएगी। निस्संदेह , भाजपा को संगठन तथा सत्ता की सोच तथा आचारव व्यवहार में व्यापक संवेदनशील बदलाव की आवश्यकता है और यह आसानी से नहीं हो सकता। राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय ऐसी समितियां बनें जो स्थानीय कार्यकर्ताओं, नेताओं, समर्थकों से बातचीत कर तथ्य इकट्ठे करें और उनके अनुसार तात्कालिक और दुरगामी दृष्टि से जो कुछ चिंतन, व्यवहार और चेहरे के स्तर पर बदलाव होना चाहिए वह किया जाए।
    सच यह है कि मंत्रालयों के अलावा सरकार से जुड़ी हुई संस्थाओं में ज्यादातर अपनी भूमिकाओं पर लचर साबित हुए हैं। व्यक्तिगत बातचीत या सोशल मीडिया की बहस में शिक्षा, इतिहास, संस्कृति, कला, साहित्य, समाज विज्ञान आदि से जुड़ी संस्थाओं ने वाकई 10 वर्षों में ऐसे रेखांकित करने वाले काम नहीं किया जिसे वर्षों से चले आरोपित विकृत वामपंथी सिद्धांत, धारणायें और नैरेटिव ध्वस्त हो सके। सरकारी विभागों को तो छोड़िए इन संस्थानों, विश्वविद्यालयों आदि के संरचनात्मक ढांचे में भी बदलाव नहीं हुआ। कुल मिलाकर इनकी प्रकृति से ऐसा लगता नहीं कि वाकई पुरानी सोच और व्यवहार वाली सत्ता बदल चुकी है। इससे सक्रिय बौद्धिक वर्ग और नैरेटिव की लड़ाई लड़ने वालों को धक्का पहुंचना बिलकुल स्वाभाविक है।

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