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- डॉ. प्रितम भि. गेडाम
पुस्तकें मनुष्य के सबसे अच्छे मित्र और मार्गदर्शक होते हैं जो सतत ज्ञानरूपी प्रकाश से उनके जीवन को पथ प्रदर्शक में रूप में प्रगति का मार्ग दर्शाते हैं। गुणवत्तापूर्ण मनुष्यबल, एवं शिक्षित समाज के निर्माण में पुस्तकालय की भूमिका महत्वपूर्ण है। देश-दुनिया में जितने भी सफल बुद्धिजीवी लोग हैं उनके जीवन में भी पुस्तकों के लिए विशेष स्थान होता है, वे भी पुस्तकें पढ़ने के लिए व्यस्त होते हुए भी समय निकालते ही हैं। देश के महान समाजसुधारक, क्रांतिकारी, महान वैज्ञानिक से लेकर आज के नेता – अभिनेता भी पुस्तकें पढ़ना पसंद करते हैं, अधिकतर लोगों ने तो अपने घर में ही खुद के संग्रहण की छोटी-सी लाइब्रेरी बनाई है। पुस्तकें मनुष्य को बेहतर जीवन चरित्र निर्माण करने में अमूल्य योगदान देते हैं। पुस्तकों ने आज के आधुनिक युग में डिजिटल स्वरूप धारण किया हैं अर्थात दुनियाभर का साहित्य इंटरनेट और यांत्रिक संसाधनों के द्वारा हमारे पास पहुंच गया हैं, जिसे हम कभी भी, कही भी पढ़ सकते हैं। ई-साहित्य ऑनलाइन लाइब्रेरी के रूप में उपलब्ध हैं, लेकिन पुस्तकालयों में उपलब्ध गुणवत्तापूर्ण साहित्य संग्रह के योग्य व्यवस्थापन और बेहतर सेवा सुविधा द्वारा ही पुस्तकालय के उद्देश्य की पूर्ति हो सकती हैं।
बड़े दुख की बात है कि हमारे देश में अधिकतर स्कूली बच्चों को पुस्तकालय के बारे में जानकारी ही नहीं होती हैं क्योंकि उन्होंने अपने स्कूली जीवन में कभी पुस्तकालय देखा ही नहीं हैं। यह हाल सिर्फ पिछड़े ग्रामीण इलाकों का ही नहीं अपितु शहरों, महानगरों में भी अनेक स्कूल पुस्तकालय बगैर चल रहे हैं, तो कई स्कूलों में दिखावे के लिए एक बंद कमरे में कुछ रद्दी की किताबें पुस्तकालय के तौर पर नजर आती हैं, अधिकतर राज्यों के सरकारी और शासन द्वारा अनुदानित स्कूलों में भी ये हालात हैं। ऐसे में विद्यार्थियों को पुस्तकालय का मोल कैसे समझेगा? यह एक गंभीर विषय हैं। स्कूली शिक्षा मनुष्य के जीवन का आधारस्तंभ होता है, अगर नींव बेहतर रही तो सफल जीवन की इमारत निश्चित ही मजबूत होगी।
ऑनलाइन का ये पहलू भी समझना होगा :- माना कि ई-साहित्य ने पाठकों के लिए नया मार्ग प्रशस्त किया हैं लेकिन यांत्रिक संसाधनों पर ज्यादा देर लगातार पढ़ना थकावट पैदा करता हैं और कोरोना महामारी ने विद्यार्थियों के ऑनलाइन पढ़ाई के नाम पर बहुत-सी नई परेशानियों को जन्म दिया हैं।