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‘अपनों’ से ही घिरी कांग्रेस

विधानसभा चुनावों ने विपक्षी गठबंधन के खोखलेपन को उजागर कर दिया है। स्थिति यह हो गई है कि गठबंधन के सहयोगी दलों से ही कांग्रेस को चुनौती मिल रही है। सहयोगी दल भाजपा से भी अधिक आक्रामक होकर कांग्रेस को घेर रहे हैं। आम आदमी पार्टी और समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस को झूठा करार दे दिया है। एक ओर आम आदमी पार्टी के कर्ताधर्ता एवं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल कह रहे हैं कि कांग्रेस की गारंटी पर भरोसा नहीं करना, इनकी गारंटी झूठी हैं। वहीं, समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव कांग्रेस को झूठी और धोखेबाज पार्टी कह दिया है। वे जनता के बीच जाकर कह रहे हैं कि कांग्रेस को वोट मत देना। कांग्रेस और भाजपा एक जैसी पार्टी हैं। उन्होंने ने तो मध्यप्रदेश में कांग्रेस के चेहरे कमल नाथ को लेकर भी कठोर टिप्पणी कर दी है। दरअसल, इससे पहले कमल नाथ ने भी अखिलेश यादव के लिए बहुत हल्की टिप्पणी की थी। संभव है कि अपने उस अपमान से भी अखिलेश यादव की नाराजगी और बढ़ गई है। याद हो कि 2018 में जब मध्यप्रदेश में कांग्रेस को बहुमत नहीं मिला था, तब उसने निर्दलीय, सपा और बसपा के सहयोग से ही जोड़-तोड़ की सरकार बनायी थी। अखिलेश यादव ने कांग्रेस को यह भी याद दिलाया है। उन्होंने यह भी दावा किया है कि “अब उनको हमारा सहयोग मिलेगा या नहीं, कह नहीं सकते। हाँ, कांग्रेस को अपने आगे-पीछे चक्कर जरूर लगवाएंगे”। भविष्य में किस प्रकार की स्थिति बनेगी, यह तो 3 दिसंबर को ही पता चलेगा। लेकिन अखिलेश यादव की ओर से हो रहे जोरदार हमलों ने कांग्रेस को भी विचलित कर दिया है। कांग्रेस की ओर से भी वरिष्ठ नेताओं ने अखिलेश यादव को नसीहत देने का प्रयास किया है। परंतु ऐसा लग रहा है कि विपक्षी गठबंधन में दिख रही ये दरारें अभी और गहरी होंगी। जिन सीटों पर समाजवादी पार्टी और आम आदमी पार्टी को अपने पक्ष में थोड़ा भी जनाधार दिखायी देगा, वहाँ दोनों ही दल कांग्रेस पर और तीखे हमले करेंगे। यह भी देखना रोचक है कि विपक्षी गठबंधन के सहयोगी दल ही नहीं अपितु जो किसी गठबंधन का हिस्सा नहीं हैं, ऐसे दल भी कांग्रेस को ही अपने निशाने पर ले रहे हैं। दरअसल, उन दलों को भी यही लगता है कि कहीं न कहीं कांग्रेस ने उनके साथ भी छल किया है। बीते दिन जब बहुजन समाजवादी पार्टी की मुखिया मायावती मध्यप्रदेश में प्रचार के लिए आई तों उन्होंने भी कांग्रेस पर जोरदार हमला किया। कांग्रेस की नीयत पर सवाल उठाए। पिछड़ा वर्ग को लुभाने के लिए आजकल कांग्रेस ने जातिगत जनगणना का शिगूफा छोड़ रखा है। मायावती ने इसी शिगूफे पर सवाल उठाया और कहा कि कांग्रेस के जातिगत जनगणना के वायदे पर हमें विश्वास नहीं करना चाहिए क्योंकि जब कांग्रेस के पास सत्ता थी, तब उसने कभी भी पिछड़ा वर्ग के हित में कदम नहीं बढ़ाए। बहरहाल, कहना होगा कि क्षेत्रीय दलों को अपने विरुद्ध खड़ा करने में कहीं न कहीं कांग्रेस की ही भूमिका है। विपक्षी गठबंधन में अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए कांग्रेस ने पाँच राज्यों के विधानसभा चुनाव में सहयोगी दलों के साथ कोई तालमेल नहीं बनाया। अब देखना होगा कि कांग्रेस कैसे एक साथ भाजपा, सपा और बसपा का मुकाबला करती है। मध्यप्रदेश के संदर्भ में यह बात तो सभी मानते हैं कि भले ही यहाँ सपा और बसपा का बहुत जनाधार नहीं है लेकिन ऐसी बहुत सीटें हैं, जिन पर यह दोनों ही दल भाजपा और कांग्रेस की हार-जीत को प्रभावित कर सकते हैं।

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