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भारत की चंद्रविजय से खुलती आत्मनिर्भरता की राह

  • विशाल राडंवा
    कल चंद्रमा पर हमारे यान के उतरने की सफलता से यह सिद्ध हो गया है कि अगर जीवन में हम एक बार असफल होते हैं तो इसका यह अर्थ नहीं है कि प्रयास करना बंद कर दिया जाए। इसके पूर्व हमारा चंद्रयान-2 मंजिल तक नहीं पहुंचकर बड़ा झटका देकर गया था। भारत के कितने युवा व प्रतिभाशाली वैज्ञानिक न जाने कितनी उम्मीदंे एक साथ चंद्रयान-2 की असफलता के साथ टूट गईं थीं।  लेकिन तीन साल की लगातार मेहनत,संघर्ष से आज जैसे ही चंद्रयान-3 ने अपनी 40 दिन की यात्रा के बाद सफलता का परचम चंद्रमा पर साफ्ट लैंडिंग के माध्यम से लहराया, वो भी चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर, जहां जाने वाला भारत विश्व में पहला देश बन गया। इसकी सफलता के पीछे भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी (इसरो) और उसमें कड़ी मेहनत के साथ मजबूत इच्छा शक्ति और आत्मनिर्भर भारत के संकल्प के साथ कार्य करने वाले वैज्ञानिक हैं।
    हमारा चंद्रयान-3 ट्वीटर पर शीर्ष सात में इंडिया ओन द मून,विक्रम लेंडर,चंदा मामा,दक्षिणी ध्रुव से सम्बन्धित हैसटेैग ट्रेंड करने लगे जो कि उतिष्ठ भारत के संकल्प को बयां करता है। केवल इतना ही नहीं, दुनियाभर की प्रतिक्रियाएं आने लगी हैं जिनमें अमेरिका की स्पेस एजेंसी ने कहा- हिस्ट्री मेड बधाई इसरो, यूरोप स्पेस एजेंसी लिखती है- बधाई इसरो। साथ ही उसके महानिदेशक डॉ.जोसेफ असचबैकर लिखते हैं- अतुलनीय भारत, भारत के सभी नागरिकों को बधाई। एयर स्पेस एजेंसी (जाक्सा) जापान बधाई देती है। इनके साथ ही भारत स्थित विदेशी दूतावासों ने भी भारत को बधाई दी है।
    विदेशी मीडिया में बीबीसी अपनी हेडलाइन में लिखता है-इण्डिया मेक्स हिस्ट्री। वहीं वह रूस जिसका सपना हमसे पहले दक्षिणी ध्रुव पर पंहुचने का था, आज रूस भारत के लिए लिखता है- इण्डिया चंद्रयान-3 एयरक्राफ्ट लैंड ऑनमून। न्यू यार्क टाइम जिसने एक समय हमारा मजाक बनाया था, आज अपनी हैडिंग में लिखता हैं-इन लेटेस्ट मून रेस, इंडिया लैंड फर्स्ट इन सदर्न पोलर रीजन। फ्रांस का अखबार ली मोंढ़े लिखता है-इंडिया बीकम फर्स्ट नेशन टूलैंड अ स्पेस क्राफ्ट नियर द मून्स साउथ पोल। द गार्डियन लिखता है कि चांद के दक्षिण ध्रुव के पास लेंडर उतारकर भारत ने वो कारनामा कर दिखाया है जो अब तक कोई नहीं कर पाया है। इनके अलावा और भी समाचार एजेंसियों जैसे द काठमांडू, द डेली स्टार, तुर्की, जर्मनी,जापान और दुनिया भर के अखबारों ने आज अगर सुर्खी दी है तो अमृत काल के उतिष्ठ भारत के चंद्रयान-3 को दी है।
    समय बड़ा परिवर्तनशील है। किसी की भी स्थिति सदैव एक जैसी नहीं रहती है। यदि हम सदैव प्रयत्न शील रहे तो आज जहां हम हैं, उससे आगे भी निश्चित ही पहुंचेंगे। देश ने 1981 का वो दिन भी देखा है जब अन्तरिक्ष में जाने की बात हो रही थी और बैलगाड़ी पर हमारा सेटेलाइट रख कर ले जाया जा रहा था। वो दौर था जिस दौर में लोग हमारे दृश्यों को देखकर मजाक उड़ाते थे कि वो देश है भारत जहां साईकिल पर रखकर सेटेलाइट को ले जाया जाता है लेकिन उन लोगों को क्या पता कि साईकिल पर केवल सेटेलाइट ही नहीं, दृढ़ इच्छा शक्ति और मजबूत इरादों के साथ आने वाले समय में भारत को विश्व में गौरवान्वित करने वाली दूरदृष्टि और सकारात्मक सोच जा रही है। लेकिन इसके बावजूद जब भारत को पिछड़ा बताकर मजाक बनाया जाता था।
    न्यू यार्क टाइम्स में मजाक उड़ाते हुए कार्टून छापे जाते थे कि ये वो लोग हैं जो बैलगाड़ी और साईकिल से चलते हैं और इन्हें एलीट स्पेस क्लब में शामिल होना है। चंद्रयान-2 के समय बीबीसी के एक संवाददाता ने लिखा था- भारत में लगभग आधी आबादी के पास शौचालय नहीं है और वो चंद्रमा पर जाने की बात करते हैं। इससे यह भी सिद्ध होता है कि ये वही संकीर्ण मानसिकता वाले लोग हैं जिनका जीवन नकारात्मकता से भरा हुआ है। जो अपने आप को तथाकथित बुद्धिजीवी समझते हैं, जो कहते हुए पाए जाते हैं कि क्या आवश्यकता है, इतने करोड़ खर्च करके चंद्रमा पर जाने की।
    इतने करोड़ में न जाने कितने किमी सड़कें, कितने शौचालय और न जाने कितने प्रकार के संसाधन जुटाए जा सकते हैं लेकिन ये जवाब है भारत की तरफ से दुनिया के उन सभी लोगों को जो भारत के प्रति संकीर्णता, द्वेष की भावना रखते है। हमारे इसरो ने इस तरह से बहुत ही कम संसाधनों के साथ काम किया है। प्रधानमन्त्री ने भी कहा -जब हमारी आंखों के सामने ऐसे कीर्तिमान रचे जाते हैं तो जीवन धन्य हो जाता है क्योंकि पूरी दुनिया ने इसका स्वागत किया है। यह मात्र लगभग 615 करोड़ रु. के खर्च की बात नहीं है। यह बात हमारी खुली आंखों से देखे गये सपने के साकार होने की है।
    हर किसी की नजरें केवल चंद्रयान-3 पर थीं कुछ समय के लिए मानो भारत थम सा गया हो।
    आत्मनिर्भर भारत की कल्पना को इस सफलता ने साकार करने की दिशा में एक आत्मविश्वास पैदा किया है। यह आत्मविश्वास तब बहुत अर्थपूर्ण है जब देश दुनिया की तीसरी अर्थव्यवस्था बनने की दिशा में संकल्पित है। ऐसे ही प्रयासों से हम पांचवीं अर्थव्यवस्था बन चुके हैं। इस कामयाबी ने भारत को अंंतरिक्ष में महाशक्ति बना दिया है। ऐसे अनेक क्षेत्रों में प्रतिभा, संकल्प और कर्मशीलता का परिचय अभी देना है। 
    अंतरिक्ष में हमारे वैज्ञानिकों की प्रतिभा का यह पहला परिचय नहीं है किंतु अंतरिक्ष के नए आयाम खोलने का यह पहला बड़ा कदम है। हमारी अंतरिक्ष विजय यात्रा आर्यभट्ट उपग्रह छोड़ने और राकेश शर्मा के अंतरिक्ष में पहुंचने के पड़ावों से यहां तक पहुंची है। यह चंद्रखोज इसलिए इनसे अलग व महत्व की है क्योंकि हमने किसी अन्य देश का अनुसरण न करते हुए मौलिक प्रयोग किया है। हमने पहली बार चंद्रमा की उस अंधेरी सतह पर अपना यान उतारा है जो अंधेरे में डूबी होने के साथ दुनिया के लिए अभी तक अगेय थी। 
    नासा जैसी एजेंसियों में भी हमारी प्रतिभाएं बड़ी संख्या में काम कर रही हैं किंतु देश में कार्यरत वैज्ञानिकों के इस कमाल-कार्य से प्रतिभा पलायन की समस्या को भी एक तरह से कम करने में मदद िमलेगी जो देश के विकास के लिए आवश्यक है। साथ ही यह परिघटना दुनिया का भारत के प्रति नजरिया बदलने में मददगार होगी। नकारात्मकता के माहौल में बड़ी रेखा सकारात्मक काम करके ही खीचीं जाती है। 

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