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- रमेश शर्मा
भारत का सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार दीपावली है । यह पाँच दिवसीय दीपों का उत्सव है । जो कार्तिक कृष्ण पक्ष त्रियोदशी से आरंभ होकर कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया तक चलता है । पहले दिन धनतेरस, दूसरे दिन रूप चतुर्दशी, तीसरे दिन दीपावली, चौथे दिन गोवर्धन पूजन और पाँचवे दिन भाई दूज से इस उत्सव का समापन होता है।
इस पाँच दिवसीय उत्सव श्रृंखला की अलग-अलग पौराणिक कथाएँ हैं। जिनकी स्मृति के रूप में आयोजन होता है । अन्य उत्सवों की भाँति इन पौराणिक संदर्भों को भी निमित्त भी जनकल्याण है । यह बहुआयामी है । व्यक्ति निर्माण, समाज निर्माण, राष्ट्र निर्माण और समाज समरस सशक्तिकरण।
पौराणिक संदर्भ : पौराणिक संदर्भ के अनुसार यह अवधि समुद्र मंथन की भी है । कार्तिक कृष्ण पक्ष त्रियोदशी को धनवंतरि जी प्रकट हुये थ। धनवंतरि जी को आरोग्य का देवता माना गया है जबकि वैद्य या चिकित्सक के रूप में अश्विनी कुमार हैं। अब यह भगवान धनवंतरि जी के नाम का अपभ्रंश हो या स्वास्थ्य सबसे बड़ा धन । इस तिथि का नाम धनतेरस हो गया । इस दिन दोनों कार्य होते हैं । आरोग्य वृद्धि का भी और धन वृद्धि कामना भी । धन गतिमान होता है । वह रुकता नहीं। जल की भाँति धन स्वयं अपनी राह निकाल लेता है इसलिये बुद्धिमान व्यक्ति धन के स्थायित्व के लिये धन को स्थाई संपत्ति में परिवर्तित करने का प्रयास करते हैं।
चल मुद्रा को ऐसी अचल या स्थाई संपत्ति में परिवर्तित करने का जो आने वाली पीढ़ियों तक सहेजी जा सके। और फिर स्वास्थ्य हो या संपत्ति उसकी सार्थकता सदुपयोग में ही होती है । यदि धन का अपव्यय न हुआ और केवल तिजौरी में बंद रखा गया तब भी उसकी उपयोगिता क्या है । इसलिये धन का सकारात्मक परिचालन रहना चाहिए । अगला दिन रूप चतुर्दशी का है । इसे नर्क चतुर्दशी भी कहते हैं। यह तिथि स्वयं की साधना का मूल्यांकन है। इस दिन जिस प्रकार प्रातः उठकर स्नान, व्यायाम, योग साधना का विधान है यह एक प्रकार से स्वयं के शारीरिक मानसिक स्वास्थ्य की साधना और दिनचर्या संकल्प का है।
वर्षा और शरद ऋतुओं के अनुरूप जीवन चर्या बनाई थी तो आरोग्य का सशक्तिकरण एवं आंतरिक ऊर्जा का संचार होता है । तब चेहरे की काँति बढ़ती है । इस काँति के कारण ही व्यक्ति को रूपवान कहा जाता है । यह तिथि शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की समृद्धि की परीक्षा का दिन है । इसलिये तिथि का नाम रूप चतुर्दशी है । नरकासुर के वध के कारण नर्क चतुर्दशी और उसके तनाव से मुक्ति के कारण तिथि का नाम नर्क चतुर्दशी और नरकासुर के अंत से मानवता के जो चेहरे खिले इससे नाम रूप चतुर्दशी मिला ।
तीसरा दिन दीपावली का है । इसी दिन भगवान राम चौदह वर्ष वनवास के बाद अयौध्या लौटे थे । उनके आगमन के आनंद में दीपोत्सव हुआ । इस परंपरा के पालन में इस तिथि को दीपावली मनाई जाती है। दीपोत्सव के लिये इस तिथि का निर्धारण भी समाज को एक संदेश भी है । दुष्टों का अंत करके रामजी के लौटने का आनंद तो है ही । साथ ही एक वैज्ञानिक दर्शन भी है । वर्ष में कुल बारह अमावस होतीं हैं। सभी बारह अमावस में कार्तिक की यह अमावस अपेक्षाकृत अधिक अंधकार मय होती है।
दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजन होता है । इस दिन गोबर से पर्वत का प्रतीक बनाकर पूजन की जाती है और पशुओं का श्रृंगार करने की परंपरा है । पुराण कथा के अनुसार यह तिथि भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाने से जुड़ी हुई है । भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठाकर प्रकृति के कोप से मानवता की रक्षा की थी । उसी स्मृति में गोवर्धन पूजन होती है । पर्वत के प्रतीक का पूजन पर्वतों के संरक्षण से जुड़ा है।
दीपावली का समापन भाई दूज से होता है। इस दिन भाई अपनी बहन के घर जाकर भोजन करता है और भेंट देता है । रक्षाबंधन पर भाई अपनी बहन को अपने घर आमंत्रित करता है। पर भाईदूज के दिन भाई स्वयं अपनी बहन के घर जाता है। पुराणों में इस तिथि को यम द्वितिया भी कहा गया।
यम और यमुना भाई बहन हैं। इनके पिता सूर्यदेव हैं। दोनों भाई बहन बचपन में बिछुड़ गये थे। अंत में भाई यम ने अपनी बहन यमुना को खोज लिया, बहन के घर जाकर भोजन किया और घोषणा की कि इस दिन जो भाई अपनी बहन के घर जाकर भोजन करेगा उसे यमपुरी में कोई कष्ट नहीं होगा। इस तिथि भाइयों को संदेश है कि भले बहन का विवाह हो गया । वह दूसरे घर चली गई पर उसकी चिंता करना है, उसके घर जाकर उसकी कुशल क्षेम का पता लगाना है।
भाई अपनी समृद्धि में खो न जायें अपनी बहन की भी चिंता करें। दीपोत्सव का त्योहार तभी सार्थक है जब उत्सव आयोजन में बहन का स्मरण आये और पूजा उपासना मिलन आदि करके तुरन्त बहन के घर जायें । यह दोनों परिवारों के बीच समरसता का संदेश है। इस प्रकार दीपोत्सव के ये इन पाँच दिनों में समाज का ऐसा कौनसा वर्ग है जिससे संपर्क नहीं बनता जिसकी भूमिका महत्वपूर्ण है।