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भारतीय मजदूर संघ : 70 वर्ष की यात्रा और उपलब्धियां

  • धर्मदास शुक्ला
    राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्री गुरुजी के वैचारिक कल्पना व निर्देश पर संघ के वरिष्ठ प्रचारक श्रीमान दत्तोपंत ठेंगड़ी जी ने 23 जुलाई, 1955 को आजादी के प्रणेता बाल गंगाधर तिलक जी के जन्म दिन और महान स्वतंत्रता सेनानी चन्द्रशेखर आजाद जी की जयंती पर भारतीय मजदूर संघ की स्थापना भोपाल में की थी। श्री ठेंगड़ी द्वारा गैर-राजनीतिक श्रम संगठन की शुरुआत हुई और देश में चलने वाले श्रम संघों के नारे ‘चाहे जो मजबूरी हो, हमारी मांगे पूरी हो’ को अमान्य करते हुए भारतीय संस्कृति के आधार पर ‘भारत माता की जय’ के घोष के साथ ही ‘देश के हित में करेंगे काम, काम के लेंगे पूरे दाम’ जैसे राष्ट्रीय प्रतिबद्धता का नारा देकर शून्य से इसकी शुरुआत की, जो ‘मजदूरों का, मजदूरों के लिए और मजदूरों द्वारा संचालित गैर-राजनीतिक श्रम संगठन है।’
    वर्ष 1955 से 1967 तक के प्रारंभ के कार्यकर्ताओं ने बिना किसी पद के कार्य किया और 1967 में भारतीय मजदूर संघ का प्रथम अधिवेशन दिल्ली में संपन्न हुआ।
    1966 के इंश्योरेंस की मीटिंग में वामपंथियों द्वारा ‘वंदे-मातरम्ा्’ ‘भारत माता की जय’ के घोष पर आपत्ति की गयी थी, बाद में स्वयं स्व. गुरुदास गुप्ता जी द्वारा ही 2013 में ‘भारत माता की जय’ और ‘वंदे मातरम्ा्’ के नारे लगाये गये। सन 1980 में भारतीय मजदूर संघ देश का सबसे बड़ा द्वितीय क्रमांक का संगठन बना, फिर सन 1989 और वर्ष 2002 में सभी श्रम संगठनों को पीछे छोड़ते हुए लगातार दूसरी बार प्रथम क्रम का श्रम संगठन बना, जो आज भी है।
    1962 में चीन के आक्रमण के समय ऑडिनेंस फैक्टरियों में वामपंथी यूनियनों के द्वारा ही हड़ताल की गयी, जबकि 1971 के युद्ध के समय बी.एम.एस. की उपस्थिति के कारण उस समय हड़ताल तो हुई ही नहीं, बल्कि मजदूरों ने आठ घंटों के स्थान पर 16-16 घंटें काम किया, क्योंकि उनके अंदर देशभक्ति का भाव आ गया था।
    सन 1963 में कंज्यूमर प्राइज इंडेक्स को अवैज्ञानिक बताया गया और इस विषय को लेकर आंदोलन किया गया। आंदोलन के फलस्वरूप, केन्द्र सरकार ने लाकड़ावाला समिति का गठन किया, जो भारतीय मजदूर संघ की पहली उपलब्धि थी और पहली बार मजदूरों को महंगाई भत्ता का लाभ एवं सभी को बोनस मिला।
    आपातकाल के खिलाफ श्रमिक संगठनों में केवल भारतीय मजदूर संघ के कार्यकर्ताओं ने आंदोलन किया, अन्य किसी यूनियनों ने हिम्मत नहीं दिखायी। सन 1978 में श्री मोरारजी देसाई जी द्वारा ‘भूतलिंगम कमेटी’ का गठन कर बैंकों के श्रमिकों के हितों पर कुठाराघात करने के लिए ‘अति आवश्यक सेवा संधारण अधिनियम’ लाया गया, जिसका भारतीय मजदूर संघ ने तीव्र तरीकों से विरोध किया एवं पूरे देश में आंदोलन व प्रदर्शन किया और सरकार को झुकने के लिए विवश किया। भारतीय मजदूर संघ की एक बड़ी उपलब्धि यह रही कि जी-20 के अंतर्गत एल-20 की अध्यक्षता करने का अवसर भ संघ को प्राप्त हुआ। इसके अलावा देश भर में प्रदेश, महासंघ, जिला व यूनियन स्तर पर बहुत सारी उपलब्धियां हासिल की गयी हैं। विभिन्न आंदोलनों के अलावा सामाजिक कार्य भी निरंतर जारी हैं।

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