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भारत में धार्मिक पर्यटन का भक्तिकाल

  • प्रमोद भार्गव
    पांच सौ साल पहले जब अयोध्या में इस्लाम धर्मावलंबी आक्रांता राम मंदिर ध्वस्त कर रहे थे, तब तुलसी और सूरदास राम एवं कृष्ण की लीलाओं का चरित्र हिंदी की सहायक भाषाओं बृज, अवधि और भोजपुरी में रच रहे थे। जिससे हमलावरों के हमलों से आहत जनमानस जागरूक हो और अपनी सनातन सांस्कृतिक अस्मिता तथा देश की संप्रभुता के लिए बलिदानी भाव-बोध से जूझ जाए। निहत्था भक्त इसी थाथी के बूते इस्लाम की तलवार और फिरंगियों की तोपों से पूरे पांच सौ साल युद्धरत दिखाई देता रहा। इसी युद्धरत आम भारतीय ने हमें 15 अगस्त 1947 को आजादी दिलाई। तत्पश्चात भी वामपंथी वैचारिकी कुछ इस तरह गढ़ी जाती रही कि हम अपनी ऐतिहासिक सांस्कृतिक विरासत पर प्रश्नचिन्ह उठाने लग गए? मनमोहन सिंह सरकार ने राम और रामसेतु के अस्तित्व को ही झुठलाने का काम कर दिया।
    अयोध्या में बढ़ते तीर्थयात्री : उत्तर प्रदेश सरकार के द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, बीते वर्ष 2.39 करोड़, यानी प्रतिदिन करीब 70 हजार तीर्थयात्री अयोध्या नगरी में पहुंचे। यात्रियों की यह आमद 2022 की तुलना में सौ गुना अधिक रही। ऐसा अनुमान है कि भगवान राम के मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा के बाद अयोध्या देश का सबसे बड़ा धार्मिक पर्यटन स्थल हो जाएगा। यहां प्रतिवर्ष दस करोड़ पर्यटकों के आने की उम्मीद जताई जा रही है। एक पर्यटक औसतन 2700 रुपए खर्च करता है, अर्थात अयोध्या ही नहीं समूचे प्रदेश की अर्थव्यवस्था को इस पर्यटन से बल मिलेगा।
    मंदिरों का चतुर्दिक विकास : उत्तरप्रदेश में धार्मिक पर्यटन में बढ़ोत्तरी से प्रभावित व प्रेरित होकर अन्य राज्य सरकारें भी धार्मिक स्थलों के संरचनात्मक विकास और ठहरने व आवागमन की सुविधाओं को बढ़ावा देने में लग गई हैं। असम के गुवाहाटी में कामाख्या मंदिर का 500 करोड़ रुपए की लागत से विकास हो रहा है। इस मंदिर के परिसर का क्षेत्र तीन हजार वर्गफीट से बढ़ाकर 10 हजार वर्गफीट किया जा रहा है। राजस्थान में गोविंद देव मंदिर, पुष्कर तीर्थ और बेनेश्वर धाम का विकास सौ-सौ करोड़ रुपए की लागत से किया जा रहा है। बिहार सरकार भारतमाला धार्मिक संपर्क योजना के अंतर्गत उच्चैठ भगवती मंदिर से महिष तारास्थल को जोड़ने के लिए मधुबनी के उमगांव से सहरसा तक के मार्ग को विस्तृत कर रही है। कोल्हापुर में 250 करोड़ की लागत से महालक्ष्मी मंदिर गलियारा बना रही है।

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