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परीक्षाओं की शुचिता पर सवाल उठाने से पहले..

  • डॉ. प्रकाश सी. बरतूनिया
    विगत दिनों एन. टी. ए. की नीट- यू. जी. परीक्षा के पेपर लीक की घटना देश भर के मीडिया की सुर्खियों में बनी रहीं । इस प्रकार की महत्वपूर्ण परीक्षाओं में ऐसी चूक, भूल, गलती या अपराध आदि का होना छात्रों, परीक्षार्थियों, अभिभावक व शिक्षा जगत के लिए बहुत दुर्भाग्यपूर्ण एवं क्षतिकारक है । यद्यपि नीट – यू. जी की परीक्षा के पेपर लीक की घटना के बाद सरकार की हर स्तर पर त्वरित कार्यवाही भी दिखाई दी गई। इनमें जांच समिति का गठन, एन. टी. के. महानिदेशक को पद से हटाया जाना, प्रकरण को सी. बी. आई. को देना, भविष्य की परीक्षाओं के लिए देश के शीर्ष शिक्षाविदों की समिति का गठन आदि घटनाक्रम सम्मिलित हैं। इनके अतिरिक्त केन्द्र व राज्यों में ऐसे अपराध के लिए सजा और दंड में कठोरता के कानून भी पारित किये गये ।
    देश में जनसंख्या वृद्धि के साथ महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों, संस्थानों की प्रवेश परीक्षाएं तथा संघ एवं लोक सेवा आयोग, राज्य लोक सेवा आयोग एवं सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की भर्ती की प्रतियोगी परीक्षाएं आयोजित करवाई जाना चुनौतीपूर्ण बनता जा रहा है । विशेष कर व्यवसायिक पाठ्यक्रमों में सीटों की संख्या बहुत कम होती है और परीक्षार्थियों की संख्या कई गुना अधिक होती है । व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में प्रवेश की परीक्षाओं को सम्पन्न करवाना और भी कठिन है क्योंकि इनमें धन का प्रचलन, कोचिंग क्लासेस, नौकरी, प्लेसमेंट, खुद का व्यवसाय, स्वतंत्र प्रेक्टिस जैसे अवसर विद्यमान है। जबकि यू. जी. के अन्तर्गत बी. ए., बी. एस. सी., बी. काम आदि की प्रवेश परीक्षाओं में ऐसी मारा-मारी दिखाई नहीं दी जाती है।
    यह सत्य है कि परीक्षाओं की शुचिता केवल नौकरी, रोजगार या व्यवसाय तक सीमित नहीं है ब्लकि विज्ञान – प्रौद्योगिकी, शोध, मानवीय कल्याण, विकास एवं देश के भविष्य के लिए भी अति आवश्यक है । किन्तु यह भी सत्य है कि हमारे देश में अनेक संस्थाएं ऐसी भी हैं जो अपने-अपने क्षेत्रों में एक लम्बे समय से निरंतर उत्कृष्ट कार्य करती आ रही हैं। देश में सर्वाधिक महत्वपूर्ण पदों के चयन हेतु कार्यरत संघ लोक सेवा आयोग की सेवाएं अपने उच्च कोटि के स्तर को बनाएं रखने के लिए जानी जाती है। इसकी स्थापना से ले कर आज तक कभी पेपर्स लीक होने के बारे में सुनाई नहीं दिया गया। देश में ऐसे कई राज्य हैं जिनके राज्य लोक सेवा आयोगों की परीक्षाओं का उच्च स्तर आज भी कायम है । अंग्रेजों के समय से कार्यरत इन संस्थाओं के कार्य का स्तर छोटी-मोटी बातों को छोड़ दें तो सदैव उत्कृष्ट रहा है। इन परीक्षाओं के संचालन कराने की एस. ओ. पी. सख्त है।
    इनको सम्पन्न कराने में सरकार और सरकारी अधिकारियों की भूमिका और दायित्व सुनिश्चित है। इनमें बाहरी ऐजेन्सियों की भूमिका और कार्य अति सीमित है। जबकि अन्य संस्थाओं, महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों में प्रवेश एवं विशेषकर व्यवसायिक पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए संचालित परीक्षाओं आदि में निजी एजेन्सियों की भूमिका होने के कारण इनके सही ढंग से और प्रामाणिकता के साथ परीक्षाएं करवाये जाने में अधिक सावधानी एवं सतर्कता की आवश्यकता होती है ।
    जैसा कि ऊपर कहा गया है कि सभी प्रकार की प्रतियोगी परीक्षाओं की एक सामान्य समस्या सीमित सीटों का या रिक्तियों का होना और परीक्षार्थियों की संख्या इनसे कई गुना अधिक होना है। चयन या प्रवेश तो निर्धारित सीटो के अनुसार तक ही होता है या सीटों की 25% की संख्या की प्रतीक्षा सूची रहती है। प्रवेश की प्रतियोगी परीक्षाओं में तो अनेक विकल्प रहते हैं जैसे सरकारी शिक्षण संस्थाएं, निजी शिक्षण संस्थाएं या संस्थाओं की रैंकिंग या स्तर की श्रेणियां भी प्रवेश के लिए उपलब्ध रहती है। हाल ही में एन.टी.ए. के नीट- यू. जी. घटनाक्रम से छात्रों और अभिभावकों की पीड़ा तो समझी जा सकती है किन्तु कोचिंग संस्थाओं की अति सक्रियता कहीं उनके शुद्ध व्यावसायिक हितों के कारण तो नहीं है? मध्यप्रदेश के मीडिया ने सब छोड़कर एन. टी. ए. के अध्यक्ष को लक्षित किया जबकि वास्तविकता यह है कि एन. टी. ए. में अध्यक्ष की भूमिका अति सीमित है या नहीं के बराबर कही जा सकती है। एन. टी. ए. के सभी प्रकार के कार्य एवं निष्पादन की जिम्मेदारी महानिदेशक एवं निदेशक की ही तय है। एन.टी. ए. के वर्तमान अध्यक्ष के मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग के कार्यकाल के 13-14 वर्ष पुराने प्रकरण को अनावश्यक उछालना यहां तक अध्यक्ष के मेधावी बच्चों को इस प्रकरण में घसीटने का प्रयास किस ओर संकेत करता है? वर्तमान एन. टी. ए. अध्यक्ष प्रो. (डॉ.) प्रदीप कुमार जोशी राष्ट्रीय संस्थान राष्ट्रीय शैक्षिक योजना एवं प्रशासन संस्थान (एन. – आई. ई.पी.ए. नीपा) के निदेशक रहे हैं । इसके बाद वे मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग, छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष एवं संघ लोक सेवा आयोग के सदस्य तथा अध्यक्ष रहे हैं। पूरे देश में यह एक अनूठा उदाहरण है कि कोई व्यक्ति दो राज्यों के लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष तथा संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष रहे हों। तीनों ही पदो पर उनका कार्य उत्कृष्ट रहा और कभी कोई पेपर लीक की घटना भी नहीं घटीं। बेहतर होता मीडिया उनके तीनों अध्यक्षीय पदों के कार्यकाल में हुई परीक्षाओं एवं चयनित उम्मीदवारों की संख्या भी बताता। साथ ही उनके पूर्व एवं उनके बाद के अन्य अध्यक्षों के कार्यकाल में हुई परीक्षाओं और चयनित उम्मीदवारों की भी तुलनात्मक संख्या बताता|
    यहां यह उल्लेखनीय है कि उनकी अध्यक्षता में संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षाएं एवं साक्षात्कार कोरोना की भीषण त्रासदी के चलते भी उन्होने निरस्त नहीं होने दी। बल्कि समय पर परीक्षाएं एवं साक्षात्कार करवाएं जाने में संघ लोक सेवा आयोग के कुछ कर्मचारियों की कोरोना से मृत्यु हो गई। स्वयं अध्यक्ष को तीन बार कोरोना हुआ एवं लम्बी अवधि तक उन्हें अस्पताल में भर्ती रहना पड़ा । ऐसा उदाहरण देश भर में शायद ही सुनने को मिला हो। वे चाहते तो उस अवधि में संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षाएं और साक्षात्कार कोरोना के कारण निरस्त भी करवा सकते थे ।
    मीडिया हमारे देश की व्यवस्था का एक जिम्मेदार एवं महत्वपूर्ण अंग है। देश की अनेक संस्थाओं एवं विश्वविद्यालयों द्वारा किये जा रहे सकारात्मक कार्यों को नजरअन्दाज किये जाने से देश, छात्र, अभिभावक एवं शिक्षा जगत पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। छात्रों के प्रति मीडिया की चिंता उचित है किन्तु हजारों छात्रों का भविष्य बनाने वालों के भविष्य की चिंता क्या नहीं की जानी चाहिए ? एन. टी. ए., नीट- यू. जी. की परीक्षाएं निरस्त होने से किसका कितना नुकसान या फायदा होगा इस पर गंभीरता से सोच कर निर्णय लेना होगा। कहीं ऐसा ना हो कि मूर्ति की सफाई करते-करते मूर्ति के मूल स्वरूप को ही खरोचें आ जाएं ।

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