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‘स्वराज एवं स्वधर्म’ के प्रति ‘स्वाभिमान’ के जागरणकर्ता : लोकमान्य तिलक

  • सुरेन्द्र शर्मा
    भारतीय स्वाधीनता के आंदोलन का जब भी स्मरण किया जाएगा उसमें भारतीय स्वराज एवं स्वधर्म के प्रति स्वाभिमान का जागरण करने के लिए बाल गंगाधर तिलक उपाख्य लोकमान्य तिलक को सर्वप्रथम स्मरण किया जायेगा। वह भारत के प्रमुख नेता, समाज सुधारक,स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और लोकप्रिय नेता थे उनके नाम के आगे लोकमान्य लगाया जाता है यह वह उपनाम है जो उन्होंने अपने कर्तत्व से जनता के दिलों में स्थान बनाकर प्राप्त किया था।
    लोकमान्य तिलक ने ही सबसे पहले ब्रिटिश राज के दौरान ‘पूर्ण स्वराज’ की मांग उठाई थी इसके लिए उन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का जनक भी कहा जाता है ‘स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं उसे लेकर रहूंगा’ का नारा देने वाले भी लोकमान्य तिलक ही थे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नायक लोकमान्य तिलक हैं।
    बाल गंगाधर तिलक सिर्फ एक लोकप्रिय नेता ही नहीं बल्कि भारतीय इतिहास, संस्कृत ,हिंदू धर्म गणित और खगोल विज्ञान जैसे विषयों के विद्वान थे उनका पूरा जीवन एक आदर्श है और भारत के स्वर्णिम इतिहास का प्रतीक है।
    बाल गंगाधर तिलक का जन्म 23 जुलाई 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी में हुआ था तिलक के पिताजी का नाम गंगाधर रामचंद्र तिलक था वह संस्कृत के प्रकांड विद्वान और प्रख्यात शिक्षक थे उनकी माता जी का नाम पार्वतीबाई गंगाधर था वह एक वह एक विदुषी महिला और आदर्श ग्रहणी थी तिलक के पिता अपने समय के अत्यंत लोकप्रिय शिक्षक थे उन्होंने त्रिकोणमिति और व्याकरण पर पुस्तक लिखी जो प्रकाशित हुई तथापि वह अपने पुत्र की शिक्षा पूरी करने के लिए अधिक समय तक जीवित नहीं रहे 1872 में श्री गंगाधर रामचंद्र तिलक का निधन हो गया।
    सन 1897 में महाराष्ट्र में प्लेग,अकाल और भूकंप का संकट एक साथ आ गया लेकिन दुष्ट अंग्रेजों ने ऐसे में जबरन लगान की वसूली जारी रखी इससे तिलक का मन उद्वेलित हो गया तिलक ने ‘महामारी अधिनियम 1897’ के प्रावधानों के खिलाफ लेख लिखा और जनता को संगठित कर आंदोलन छोड़ दिया।
    अपने लेख में तिलक ने कमिश्नर वाल्टर और चार्ल्स रेंड को निशाना बनाया तिलक के लेख से प्रभावित होकर महाराष्ट्र के दो युवा चाफेकर बंधुओं ने रेंड की हत्या कर दी ब्रिटिश सरकार ने तिलक को हत्या के लिए उकसाने और राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया इस मामले की सुनवाई और सजा से उन्हें लोकमान्य की उपाधि मिली तिलक को 18 महीने की सजा सुनाई गई जहां उन्होंने पहली बार स्वराज के विचारों को विकसित किया।
    तिलक जी ने जेल में अध्ययन का क्रम जारी रखा और बाहर आकर फिर से आन्दोलन में कूद गये। तिलक जी एक अच्छे पत्रकार भी थे,उन्होंने अंग्रेजी में ‘मराठा’ तथा मराठी में ‘केसरी’ साप्ताहिक अखबार निकाला। इसमें प्रकाशित होने वाले विचारों से पूरे महाराष्ट्र और फिर देश भर में स्वतन्त्रता और स्वदेशी की ज्वाला भभक उठी।
    युवक वर्ग तो तिलक जी का दीवाना बन गया। लोगों को हर सप्ताह केसरी की प्रतीक्षा रहती थी। अंग्रेज इसके स्पष्टवादी सम्पादकीय आलखों से तिलमिला उठे। बंग-भंग के विरुद्ध हो रहे आन्दोलन के पक्ष में तिलक जी ने खूब लेख छापे।
    30 अप्रैल 1908 को खुदीराम बोस और प्रफुल्ला चंद्र चाकी ने जज किंग्सफोर्ड को अपना निशाना बनाते हुए एक बम विस्फोट किया था इसमें दो ब्रिटिश महिलाओं की मृत्यु हो गई थी अंग्रेजों ने खुदीराम बोस पर मुकदमा चलाया इस गिरफ्तारी के खिलाफ लोकमान्य तिलक ने अपने अखबार ‘केसरी’ में लिखा उनके इस लेख ने अंग्रेजों के होश उड़ा दिए 3 जुलाई 1908 को अंग्रेजों ने तिलक को गिरफ्तार कर लिया और 23 जुलाई 1908 को उन्हें अदालत ने 6 साल की सजा सुनाई उन्हें बर्मा की मंडाले जेल में रखा गया सृजन धर्मी तिलक ने यहां 400 पेज का गीता रहस्य नामक ग्रंथ लिखा जो आज भी गीता पर एक श्रेष्ठ टीका मानी जाती है। इसके माध्यम से उन्होंने देश को कर्मयोग की प्रेरणा दी। बालगंगाधर तिलक दादा भाई नौरोजी को अपना राजनैतिक गुरु मानते थे जबकि वह अपना अाध्यात्मिक तथा वैचारिक पथ प्रदर्शक गणेश वासुदेव जोशी को मानते थे जिन्होंने पूना सार्वजनिक सभा की स्थापना की थी।।
    तिलक जी समाज सुधारक भी थे। वे बाल-विवाह के विरोधी तथा विधवा-विवाह के समर्थक थे। धार्मिक तथा सामाजिक कार्यों में वे सरकारी हस्तक्षेप को पसन्द नहीं करते थे। उन्होंने जनजागृति के लिए महाराष्ट्र में गणेशोत्सव व शिवाजी उत्सव की परम्परा शुरू की, जो आज विराट रूप ले चुकी है।
    स्वतन्त्रता आन्दोलन में उग्रवाद के प्रणेता तिलक जी का मानना था कि स्वतन्त्रता भीख की तरह मांगने से नहीं मिलेगी वर्ष 1916 में उन्होंने नारा दिया-‘स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और में उसे लेकर ही रहूंगा’
    वे वृद्ध होने पर भी स्वतन्त्रता के लिए भागदौड़ में लगे रहे। जेल की यातनाओं तथा मधुमेह से उनका शरीर जर्जर हो चुका था। मुम्बई में अचानक वे निमोनिया बुखार से पीड़ित हो गये। अच्छे से अच्छे इलाज के बाद भी वे संभल नहीं सके और एक अगस्त, 1920 को मुम्बई में ही उन्होंने अन्तिम सांस ली।
    महात्मा गांधी ने उन्हे आधुनिक भारत का निर्माता कहा था। उन्होंने आधुनिक शिक्षा को बढ़ावा देने के लिये डेक्कन एजुकेशन सोसायटी और फर्गुसन कॉलेज की भी स्थापना की थी।
    बाल गंगाधर तिलक एक महान राष्ट्रवादी,समाज सुधारक और जन नेता थे जिन्होंने अपने मत और विचारों से अनेक पीढ़ियों को प्रभावित किया उनका राष्ट्रवाद स्वामी विवेकानंद की भांति पुनुरूत्थान वादी था वह चाहते थे कि भारत एक शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में संगठित हो,एक हो और एक प्रचंड एकीकृत और केंद्रीय शक्ति के रूप में एक ही धारा में वहे।
    तिलक जी कहते थे जीतने से ज्यादा जरूरी है लड़ना,एक कायर व्यक्ति के लड़ने पर भी जीत संभव है लेकिन असली जीत तब है जब हार निश्चित होने के बावजूद भी लड़ा जाये।
    तिलक के लिये स्वराज्य का अर्थ केवल राजनीतिक अर्थ अर्थात स्वशासन ही नहीं था बल्कि इसका नैतिक अर्थ भी था अर्थात आत्मनियंत्रण और आंतरिक स्वतंत्रता उन्होंने स्वराज का वर्णन इन शब्दों में किया है”यह स्वयं पर केंद्रित और स्वयं पर निर्भर जीवन है” इस दुनिया में भी और परलोक में भी।
    ऐसे महामना को पुण्यतिथि पर कोटि कोटि नमन राष्ट्र के उत्थान हेतु समर्पित उनका सम्पूर्ण जीवन हम सभी के मन में ‘राष्ट्र प्रथम’ की भावना का सदैव संचार करता रहेगा।

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