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- डॉ. मयंक चतुर्वेदी
समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता आजम खान को न्यायालय ने सजा क्या सुनाई, सपाइयों का भारतीय न्याय प्रणाली से भरोसा ही उठ गया। दरअसल, यह इसलिए कहा जा रहा है, क्योंकि समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव जो प्रतिक्रिया दे रहे हैं, वह कहने को तो भारतीय जनता पार्टी के ऊपर शाब्दिक हमला है, लेकिन असल में तो वह पूरी प्रक्रिया के लिए अप्रत्यक्ष रूप से न्याय व्यवस्था को ही दोषी करार दे रहे हैं। उनका कहना है कि ‘माननीय आज़म खान जी और उनके परिवार को निशाना बना कर समाज के एक पूरे हिस्से को डराने का खेल खेला जा रहा है आजम खान मुसलमान हैं, इसलिए उन्हें इस तरह की सजा का सामना करना पड़ रहा है।’ जबकि इससे जुड़ी हकीकत आज सभी के सामने है।
सभी जान रहे हैं कि फ्रॉड गिरी का परिणाम आखिर बुरा ही होता है। जब पूरा परिवार ही मिलकर भ्रष्टाचार करेगा तो फिर क्या परिणाम आएगा? एमपी एमएलए कोर्ट ने फर्जी जन्म प्रमाणपत्र के साल 2019 के प्रकरण में आजम खान, तंजीन फातिमा और अब्दुल्ला आजम को दोषी करार पाया है। यहां फिर स्पष्ट कर दिया जाए कि यह दोष का पाया जाना किसी राजनीतिक पार्टी का नहीं, न्यायालय का है और सपा प्रमुख अखिलेश इसे लेकर भाजपा पर हमलावर हैं। क्या गलती करने के बाद उसकी संबंधित स्थान पर शिकायत करना भी गुनाह है? इस मामले में भी तो यही हुआ है ।
प्रकरण को गहराई से समझें, साल 2019 में रामपुर के गंज पुलिस थाने में बीजेपी विधायक आकाश सक्सेना शिकायत दर्ज कराई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि आजम खान और उनकी पत्नी ने मिल कर उनके बेटे के दो जन्म प्रमाणपत्र बनवाए हैं। फेक बर्थ सर्टिफिकेट का यह केस 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव से जुड़ा है। पीड़ित द्वारा न्यायालय की शरण में जाने के चार साल बाद ये निर्णय आया है। कोर्ट ने साक्ष्यों के आधार पर ही यह पाया कि किस-किस तरह से आजम परिवार ने भ्रष्टाचार को अंजाम दिया और उसमें अपनी पूरी संलिप्तता दिखाई, इसलिए ही कोर्ट ने फेक बर्थ सर्टिफिकेट केस में आजम खान, उनकी पत्नी तंजीन फातिमा और उनके बेटे अब्दुल्ला आजम को दोषी करार देते हुए 7-7 साल की सजा सुनाई है।
वास्तव में सत्ता के दुरुपयोग किए जाने का भी एक सटीक उदाहरण है। आजम खान ने अपनी सत्ता का गलत तरह से उपयोग करते हुए रामपुर नगर पालिका से एक जन्म प्रमाणपत्र में जारी करवाया था जिसमें अब्दुल्ला आजम की जन्मतिथि एक जनवरी, 1993 थी। इसके बाद लखनऊ से जारी दूसरे प्रमाणपत्र में अब्दुल्ला की जन्मतिथि 30 सितंबर, 1990 दर्शायी गई, यह लालच और पॉवर के गेम के लिए भ्रष्ट आचरण की पराकाष्ठा है जो एक बालक वर्ष 90 में पैदा होता है, फिर 93 में फिर से पैदा हो जाता है। अब ऐसे प्रकरणों में सजा तो मिलना ही है। इसमें भाजपा का क्या दोष?
अखिलेश यादव का यह कहना कि आजम खान ने रामपुर में स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय बनवाए हैं। आजम खान और उनके परिवार को निशाना बनाकर समाज के एक पूरे हिस्से को डराने का जो खेल खेला जा रहा है, जनता वो देख भी रही है और समझ भी रही है। कुछ स्वार्थी लोग नहीं चाहते हैं कि शिक्षा-तालीम को बढ़ावा देने वाले लोग समाज में सक्रिय रहें। यहां भी वे अप्रत्यक्ष रूप से यही कह रहे हैं कि मुसलमानों के प्रति भाजपा की योगी सरकार दुराग्रह पूर्ण व्यवहार कर रही है। जबकि यूपी की आज की तारीख में हकीकत यह है कि जनसंख्या के अनुपात में यदि कोई अल्पसंख्यक सबसे ज्यादा लाभ ले रहा है तो वह मुसलमान ही है।
इससे संबंधित समय-समय पर आईं रिपोर्ट्स को भी देखा जा सकता है, जिसमें स्पष्ट बताया गया है कि यूपी में मुस्लिम आबादी 17-19 प्रतिशत है, लेकिन कल्याणकारी योजनाओं के लाभ में उनकी हिस्सेदारी 45-55 प्रतिशत है। यानी राज्य सरकार की कल्याणकारी योजनाओं में मुसलमानों की हिस्सेदारी राज्य की जनसंख्या में उनकी हिस्सेदारी से कई गुना अधिक है। सही मायनों में देखा जाए तो इस तरह के वातावरण की निर्मिति तभी संभव है जब कोई राज्य सरकार बिना किसी भेदभाव के सभी लोगों को कल्याणकारी योजनाओं का लाभ प्रदान करती हो। इस मामले में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कहते भी हैं कि उनकी सरकार में कल्याणकारी नीतियां भेदभाव रहित हैं। अत: उत्तर प्रदेश की वर्तमान परिस्थितियों को लेकर कहना यही होगा कि यूपी की पिछली सरकारें कल्याणकारी योजनाओं के लाभार्थियों की पहचान करने के लिए ‘पिक एंड चूज’ नीति का इस्तेमाल करती नजर आयीं, जबकि योगी की सरकार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ‘सबका साथ, सबका विकास’ मंत्र के लिए प्रतिबद्ध नजर आ रही है।