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- शिवकुमार विवेक
राम अयोध्या से निकलकर किस प्रकार दक्षिण की तरफ बढ़ते गए, इसकी रोचक कहानी है। पंचवटी का रास्ता राम को अगस्त्य ने बताया था। राम वनवास की आज्ञा होते ही गुरु वशिष्ठ के द्वार पर खड़े हो गए और उनसे मार्गदर्शन मांगा कि कहां जाना है? क्योंकि वन दक्षिण की तरफ था तो पूर्व की तरफ भी। वशिष्ठ ने उन्हें भरद्वाज के पास भेज दिया जिनका आश्रम प्रयागराज के आसपास था। चित्रकूट में अत्रि मुनि ने राम को अगस्त्य का पता देकर बताया था कि यदि राम आसुरी शक्तियों के विनाश के लिए निकले हैं तो उन्हें दक्षिण तक जाना होगा। राम वहां से चित्रकूट आए और अत्रि मुनि ने उन्हें आगे भेजा जहां शरभंग और सुतीक्ष्ण ऋषि मिले। सुतीक्ष्ण स्वयं राम को अगस्त्य के आश्रम लेकर गए। पर सच यह है कि राम के पूरे वनवास काल की योजना उनकी किशोरावस्था में ऋषि विश्वामित्र ने ही रच दी थी जो उन्हें राजा दशरथ से याचना करके पहली बार वन में ले गए थे। पंचवटी और समूचा दंडकारण्य क्षेत्र, जो कौशल प्रदेश के दक्षिण से शुरू हो जाता था, रावण के प्रभाव वाला क्षेत्र था और उसके दबदबे या कहें कि आतंक के कारण इस वन में ऋषि मुनियों के आश्रम लगभग नहीं के बराबर थे। इन वनों में रहने वाली लोग बलशाली थे लेकिन मानसिक रूप से दमित थे इसलिए राम ने रणनीतिक कौशल के तहत इस इलाके को चुना। अगस्त्य ऋषि उस गहन वन क्षेत्र में रह रहे थे जहां उपद्रवी राक्षसों ने ऋषि-मुनियों का जीवन मुश्किल में डाल रखा था। इस मामले में अगस्त्य एक दुस्साहसी मुनि थे। शास्त्रों का संकेत है कि वह अपनी तरह से राक्षसों से जूझने की तैयारी कर रहे थे। यहां राम को बताया गया कि दंडकारण्य में रावण ने 14 हजार राक्षस रख छोड़े हैं जिनका नेतृत्व उनकी बहन करती है। राम ने उनसे कहा कि वह राक्षसों से युद्ध करेंगे और ऋषियों को सुरक्षित करेंगे। अगस्त ने भांप लिया कि यह व्यक्ति युद्ध करने नहीं, परिवर्तन की यात्रा पर निकला है। ‘कर्मवीर लक्ष्मण’ में रामस्वरूप वशिष्ठ लिखते हैं-अत्रि मुनि ने राम लक्ष्मण को समझाया कि दक्षिण में राक्षसों का नाश करने के लिए सैनिकों को समुद्र पार करना होगा। अगस्त्य ऋषि नौसेना की तकनीक के जानकार हैं। अगस्टाइन दो रंग रूप भेजें नल और नील वे दोनों राम को पंचवटी ले गए। अगस्त्य ऋषि से मिलकर राम ने उनसे गुरु मंत्र मांगा- तुम जानहुं जेहि कारन आयहु, ताते तात न कहीं समझायहुं। अब सो मंत्र देहु प्रभु मोही, जेही प्रकार मारो मुनि द्रोही। अगस्त्य ने ही उन्हें आगे की रणनीति बताते हुए कहा था कि सुग्रीव से मेलजोल बढ़ाना फायदेमंद रहेगा।