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“ज्ञान, शील, एकता” के त्रि-सूत्रीय मूल मंत्र के साथ कम करने वाला एकमात्र छात्र संगठन अभाविप

  • गौरव सिंह राजावात
    ज्ञान, शील, एकता मंत्र गूंजता रहा ।
    छात्र राष्ट्रभक्ति से देश जागता रहा ।।
    विद्यार्थी परिषद एक मात्र ऐसा छात्र संगठन है, जो अपने स्थापना दिवस को राष्ट्रीय विद्यार्थी दिवस के नाम से मनाता है। स्थापना के पश्चात राष्ट्रीय पुनर्निर्माण के व्यापक सन्दर्भ में ज्ञान, शील, एकता के त्रि-सूत्री मूलमंत्र के साथ छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (अभाविप) की स्थापना 9 जुलाई 1949 को हुई। अभाविप आज 76 वर्ष के‌ संघर्ष‌ के बाद विश्व का सबसे बड़ा छात्र संगठन है। विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता भारत माता की जय और वंदे मातरम के नारे लगाते हैं, बल्कि एक ध्येयनिष्ठ संगठन की विचारधारा को विद्यार्थियों और समाज के बीच लेकर जाते हैं।उनके लिए वह केवल नारे नहीं हैं, उनकी देश के प्रति निष्ठा है। देश की स्वतंत्रता के बाद छात्रों को लेकर बहुत सारी धारणाएँ थी। किसी ने कहा कि छात्र अराजकता फैलाता है, छात्र शक्ति यह उपद्रवी शक्ति है ( Student Power is a Nuisance Power), किसी कहा कि छात्र तो राजनेताओं के पीछे घूमने वाली भीड़ है, तो किसी ने कहा कि ये तो रैलियों में जिंदाबाद – मुर्दाबाद करने वाली फ़ौज है। एक तरफ वामपंथियों का हिंसक क्रांति का भ्रम भी छात्रों को प्रभावित कर रहा था। उस समय विद्यार्थी परिषद नये छात्र शक्ति को उपद्रवी शक्ति कहने के स्थान पर छात्र शक्ति को राष्ट्र शक्ति कहकर संबोधित किया। विद्यार्थी परिषद ने कहा कि Student’s Power is not a Nuisance Power, Student Power is a Nation Power विद्यार्थी परिषद ने राष्ट्रीय पुनर्निर्माण की प्रक्रिया को गति देने वाली सु-संस्कारित छात्र शक्ति का निर्माण करने का लक्ष्य लिया।
    आजादी के पश्चात भी छात्र आंदोलन स्थान-स्थान पर हो रहे थे। स्वाधीन भारत में सभी को निःशुल्क या सस्ती शिक्षा देने की घोषणाओं के विपरीत अगस्त 1947 में ही उत्तर प्रदेश में शिक्षा शुल्क को दोगुना कर दिया गया। जिसके विरोध में आंदोलनरत छात्रों पर ब्रिटिशों के जमाने की तरह बर्बरता से लाठीयाँ बरसायी गईं। मुंबई में भी जुलाई 1948 में विश्वविद्यालय शुल्क में वृद्धि को लेकर 50 हजार छात्रों ने कक्षाओं का बहिष्कार किया। परंतु विभिन्न स्थानों पर छात्रों की माँगों पर सकारात्मक विचार करने की जगह पुलिस द्वारा छात्रों को दबाने का ही प्रयास दिखाई दिया। महाविद्यालयों में शैक्षिक एवं व्यवस्थाओं में सुधार की माँगो को लेकर चल रहे आंदोलन पर 9 अगस्त 1950 को ग्वालियर में गोलीबारी हुई, जिसमें 2 छात्र शहीद हुए। बाद में इसी ग्वालियर गोलीकाण्ड के विरोध में देशभर में छात्रों की जबरदस्त प्रतिक्रियाएं आयीं, जो सरकार द्वारा जाँच के आदेश पर समाप्त हो गयी। महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों में छात्रों के आंदोलन एवं प्रशासन व पुलिस के अत्याचार चल रहे थे। विद्यार्थी परिषद का यह प्रारंभिक काल था तथा कार्य का धीरे-धीरे विस्तार हो रहा था। अभाविप अपने स्थापना काल से ही देश मैं एक आंदोलन के रूप में काम कर रहा हैं। तो हमको ध्यान में आता हैं विद्यार्थी परिषद अपने स्थापना के साथ ही प्रथम माँग पत्र में तीन प्रमुख मांगें थी – देश का नाम भारत हो, मर मिटने की प्रेरणा देने वाला वन्दे मातरम को राष्ट्रगीत माना जाए तथा हिन्दी को भारत की राष्ट्रभाषा बनाया जाए। आजादी के बाद लगातार वामपंथी एवं कम्युनिस्ट संगठनों द्वारा तानाशाही और हिंसक क्रूर आंदोलनों को बढ़ावा दिया जा रहा था। वहीं, विद्यार्थी परिषद द्वारा लोकतंत्र में विश्वास रखते हुए रचनात्मक कार्यक्रम एवं आंदोलन के लिए युवाओं को प्रेरित किया। जैसे-जैसे विद्यार्थी परिषद का कार्य कैंपस में बढ़ता गया वैसे-वैसे कैंपस से नक्सली एवं वामपंथी विचारधारा के लोग बाहर होते नजर आ रहे थे।
    विद्यार्थी परिषद का उसे समय का नेतृत्व विचार कर रहा था कि छात्र आज का नागरिक है। जिसके लिए माना जाता था कि कल वह काम करेगा कल वह नेतृत्व करेगा कल वह उत्तरदायित्व लेगा। आज वह irresponsible है क्या आज उसके लिए कोई दिशा नहीं है तो, विद्यार्थी परिषद ने यह दिशा दी की आज का छात्र कल का नागरिक है। उसके प्रति सामाजिक उत्तरदायित्व को स्थापित करने की बात कही। इसी वाक्य से आगे निकलते-निकलते सन् 1971 में अपना गुवाहाटी का अधिवेशन आया। यह मुद्दा प्रस्ताव में पारित हुआ और उसने एक दिशा दे दी। दिशा यह दे दी हमने फिर विश्वविद्यालय के नेतृत्व के बारे में उसकी निर्णय प्रक्रिया के अंदर छात्रों की सहभागिता का प्रश्न पूछा तब विद्यार्थी परिषद ने यह भी पूछा कि कैंपस के अंदर अगर भ्रष्टाचार हो रहा है तो उसका प्रतिकार किया जाएगा । 1973 मे गुजरात मे कॉलेज के अंदर भ्रष्टाचार होता है मेस के भोजन को लेकर, बढ़ती महंगाई को लेकर पुरे गुजरात के अंदर एक आंदोलन खड़ा होता है। उस आंदोलन के परिणाम स्वरूप चमन भाई पटेल सरकार विघटित हो जाती है। उसी को देखकर के बिहार के छात्र और कार्यकर्ता नारा लगते है “गुजरात की जीत हमारी है, अब बिहार की बारी है” इस नारे के साथ बिहार के अंदर एक नया आंदोलन जन्म लेता है। वहां पर जो युवा शक्ति खड़ी होती है वह बाद मे चलकर संपूर्ण क्रांति की बात करती है और यह आंदोलन जेपी आंदोलन कहा जाता है। “असम बचाओ देश बचाओ” का नारा लगाकर के साथ परिषद के नेतृव मे सैंकड़ों छात्रों ने 2 अक्टूबर 1983 को अनेक बाधाओं के बावजूद गुवाहाटी के जजेस फील्ड पर जाकर प्रदर्शन किया, चलो चिकननेक परिषद 1983 से लगातार परिषद बांग्लादेशी घुसपैठ के विरोध में जागरण एवं आंदोलन चलाती रही। हाल ही में 2007 के प्रारंभ में परिषद द्वारा बांग्लादेश की सीमा पर एक सबन सर्वे कराया गया। सर्वे में कई तथ्य ऐसे उजागर हुये, जिन्हें सरकारें लगातार छिपाती रहीं। परिषद ने संकट की गंभीरता को देश के नेतागण तथा सामान्य लोगों के सामने रखा तथा कारवाई की माँग करने हेतु देशभर में आंदोलन प्रारंभ किया व सीमावर्ती चिकन नेक क्षेत्र (किशनगंज, बिहार) में 40000 से अधिक छात्रों के साथ 17 दिसम्बर 2008 को आंदोलन किया, अंतर्राज्य छात्र जीवन दर्शन (SEIL) प्रकल्प प्रारंभ किया जिसके अंतर्गत 1966 से वहाँ के छात्र देशभर में सांस्कृतिक एकता का अनुभव लेते हुए भावात्मक एकता की ओर बढ़ते रहे। देश के शेष हिस्सों से भी छात्र वहाँ जाते रहे। यह सिलसिला अभी तक जारी है, परिषद ने 1990 में श्रीनगर, में हुए तिरंगों के अपमान के जबाव में “जहाँ हुआ तिरंगे का अपमान, वहीं करेंगे उसका सम्मान” इस नारे के साथ 11 सिंतबर 1990 में “चलो कश्मीर” आंदोलन ऐतिहासिक रैली में उस आतंक के दौर में भी देश भर के परिसरों से 10000 से अधिक छात्र देशभर से श्रीनगर की ओर चल पड़े थे। यह छात्र परिसर से तो निकल गये लेकिन अपने पूरे जीवन के लिए देश की एकात्मता के लिए संकल्पबद्ध हो गये। परिषद हमेशा ऐसे राष्ट्रीय मुद्दों पर लड़ती रही है तथा छात्रों को ऐसे विषयों के माध्यमों से देश की समस्याओं के प्रति दायित्व बोध कराती रही है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से Student For Seva, Student For Development, Khelo Bharat, Rashtriya Kala Manch, WOSY, Think India, Savishkar, Agrivision, Medivision जैसे विभिन्न आयाम, कार्य, गतिविधि एवं प्रकल्प के माध्यम से विद्यार्थियों को जोड़ा है। अभाविप के लिए सेवा समाज में समरस्ता निर्माण करने का साधन है। अभाविप के प्रारंभ से ही कार्यकर्ता सेवा कार्य करते आ रहे है। बाढ़, अकाल, भूकंप दुर्घटना या कोरोना का काल हो कार्यकर्ता त्वरित सहायता और राहत के लिए तैयार रहे है। विद्यार्थियों का विराट रूप आज सेवा भाव हेतु जागृत हुआ है। कोरोना महामारी में प्रभावित लोगों की सहायता के लिए अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ताओं ने दृढ़ संकल्प तथा इच्छाशक्ति दिखाते हुए असहाय तथा परेशान लोगों की सहायता हेतु बहुआयामी कार्य किया। “नर सेवा ही नारायण सेवा” है को मूल मंत्र मान अभाविप कार्यकर्ताओं ने जहाँ भी कोई परेशान था पीड़ित दिखा उसकी सहायता की। जहाँ कोरोना वायरस जैसे संक्रामक छुआछूत वाली बीमारी के सामाजिक प्रभाव के बारे में समाज विज्ञानियों ने लोगों के बीच अविश्वास बढ़ने, सहयोग कम होने जैसी आशंकाए जताई थी, इसके विपरीत भारतीय युवाओं ने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के नेतृत्व में इस आशंका को खारिज करते हुए मानव सेवा को ही सबसे बड़ा धर्म मान लोगों की मदद की। इतिहास में ऐसे कई उदाहरण है जब आपदाओं से प्रभावित की सहायता के लिए अभाविप कार्यकर्ताओं ने अथक परिश्रम किया। जहां कम, वहां हम की भूमिका में विद्यार्थी परिषद का प्रत्येक कार्यकर्ता समाज के साथ कंधे से कंधा मिलाकर इस संकटकाल में खड़ा रहा। विद्यार्थी परिषद के कार्य में छात्राओं को भी अहम भूमिका में रखा गया एवं ‘मिशन साहसी’ जैसे अभियान के माध्यम से छात्राओं को आत्मरक्षा के लिए भी पूरे देशभर में अभियान चलाया गया। ध्यान में आता हैं जब तमिलनाडु के तंजाबूत जिले में 12वीं कक्षा की छात्रा पर उसकी वार्डन द्वारा धर्म परिवर्तन के लिया दबाव बनाया जाता हैं। लेकिन वो छात्रा धर्म परिवर्तन के लिए नहीं मानती हैं और अपनी जान दे देती है।

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