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60% बच्चे प्रतिदिन 3 घंटे मोबाइल पर

  • राजेश पाठक
    पिछले वर्ष अमेरिका के सर्जन जनरल डॉ विवेक मूर्ती ने एक रिपोर्ट प्रस्तुत की थी, जिसका शीर्षक था ‘सोशल मडिया और युवाओं का मानसिक स्वास्थ’ . रिपोर्ट बताती है, युवाओं में सोशल मीडिया का उपयोग का स्तर पूरे विश्व में लगभग सामान है. 95% टीनएजर्स (बालक-बालिका) , और 8-12 साल के 40% छोटे बच्चे सोशल मीडिया पर हैं. इनमें से जो बच्चे दिन में 3 घंटे समय बीता रहें हैं, उनकी मात्रा 60% है. और इनमें जो गंभीर मानसिक रोगों के लक्षण सामने आ रहें वो हैं उत्तेजना, अधैर्य , आलस्य, अवसाद और अनियंत्रित आक्रोश के झटके. महाराष्ट्र में हुए सर्वे में 25% माता-पिता स्वीकार करते हुए बताते हैं कि उनके बच्चों के आत्मबल में गंभीर गिरावट के लक्षण उभर आयें हैं. इस आदत से न उबर पाने की स्थिति में धीरे-धीरे हार्मोनल विसंगतियों घेर लेती हैं , सो अलग. ऊपर से सोशल मीडिया पर सक्रियता धीरे-धीरे बढ़कर रात्रि की नींद को भी निगलने लगती है और पता भी नहीं चलता.ये ध्यान रहे जो लोग कम नींद लेते हैं, वो कम उम्र में ही बूढ़े बन सकते हैं. क्योंकि, नींद के दौरान हमारी मसल्स, सेल्स और स्किन खुद को रिपेयर करती हैं. अपर्याप्त नींद लेने की स्थिति में उन्हें ये कीमती वक्त नहीं मिल पाता है और उनका स्वास्थ्य गिरता रहता है. समस्या की गंभीरता भारत सरकार के शीर्ष नीति-नियंताओं के मध्य भी महसूस की जाने लगी है. और अब इस पर विचार शुरू हो चुका है कि क्यूँ न बच्चों के द्वारा उपयोग किये जाने वाले एप्स के लिए अभिभावकों की सहमती को अनिवार्य कर दिया जाए. पर सब जानते हैं , डिजिटल युग के पहले जब बालक घर में देरी से लौटता था तो माता-पिता उस पर अंकुश लगाने के उपाय करते थे. लेकिन आज समस्या ये है कि ज्यादातर घर के बड़े , यहाँ तक बुजुर्गों के हांथों से मोबाइल नहीं छूट पा रहा , तो कौन किस पर अंकुश लगाये. सीखने और सिखाने के सामान्य रूप से तीन तरीके देखने को मिलते हैं . एक, सुनकर ; दो, पढ़कर; और तीसरा, देख कर . कहते हैं प्रेरणा तो देख कर ही मिलती है , इसलिए सबक भी गहरा उतरता है. प्रसंग है; राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ (रा.स्व.संघ ) के कार्य का आधार नित्य लगने वाली एक घंटे की शाखा है . 70 के दशक की बात है उज्जैन में लगने वाली एक बाल-शाखा में संघ के प्रचारक तिजारे जी का नित्य जाना होता था . जो बालक लेट आता उसे तिजारे जी मैदान का एक चक्कर लगवाया करते थे , और तभी वह शाखा में शामिल हो पाता था. एक बार तिजारे जी स्वयं लेट हो गए. फिर क्या था , नियमानुसार उन्होंने ने स्वयं मैदान का चक्कर लगया और शाखा में शामिल हुए. माता-पिता को भी स्वयं मोबाइल के संचालन पर नियंत्रण दिखाना होगा, तभी घर के छोटों से उम्मीद लगा सकेंगे .

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