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भारतीय पुरातन आधुनिक विज्ञान के समन्वय के पुरोधा जयंत सहस्रबुद्धे

  • डॉ. मनमोहन प्रकाश श्रीवास्तव
    2 जून की सुबह ‘विज्ञान भारती’ के लिए अच्छी खबर लेकर नहीं आई। राष्ट्रीय संगठन मंत्री श्री जयंत सहस्रबुद्धे ईश्वर के पास चले गये। उन्होंने इस संस्था को देश- विदेश में विशेष स्थान एवं पहचान दिलाने का काम किया और वे निस्वार्थ सेवा भाव से विगत कई वर्षों से इस संस्था के माध्यम से राष्ट्र सेवा में दिन रात लगे हुए थे। मुम्बई के गिरगांव में जन्मे तथा मुम्बई विश्व विद्यालय से बी.एस-सी टेक की शिक्षा प्राप्त जंयत जी ने अपने कैरियर की शुरुआत भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र से की। पारिवारिक पृष्ठभूमि संघ की होने कारण आपको यह कार्य रास नहीं आया और अपने इस अच्छी नौकरी को1989 में छोड़कर संघ प्रचारक के रूप में महाराष्ट्र के कई शहरों में काम किया। बाद में आप गोवा और कोंकण प्रांत के कई वर्षों तक प्रचारक रहे। आप स्वर्गीय संघ प्रचारक श्री हो.वे.शेषाद्री के सचिव भी रहे हैं। 2009 से आप विज्ञान भारती के राष्ट्रीय संगठन सचिव के रूप में इस संस्था को शिखर पर पहुंचाने का कार्य कर रहे थे। विज्ञान भारती राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का अनुषांगिक संगठन है जो विज्ञान और तकनीकी के प्रचार-प्रसार और विकास के लिए विभिन्न प्रकल्पों के माध्यम से कार्य करता है। यह एक अपने आप एक ऐसा अनूठा गैर सरकारी संगठन है जो विज्ञान, तकनीक एवं प्रौद्योगिकी के माध्यम से राष्ट्र की सेवा और प्रगति के लिए कृतसंकल्पित है। पिछले कुछ वर्षों से जयंत जी कई ख्याति प्राप्त वैज्ञानिकों, शिक्षकों , प्रौद्योगिकी एवं तकनीकी विशेषज्ञों, विज्ञान और तकनीक की शोध एवं शिक्षण संस्थाओं को अपने साथ जोड़ रहे थे। उन्हें एक मंच पर लाना, साथ काम करने के लिए प्रेरित करना आरंभ से ही उनका सपना रहा था। इसीलिए यह संस्था जयंत जी के नेतृत्व में विभिन्न आधुनिक समसामयिक विज्ञान, प्रोद्यौगिकी, तकनीक, चिकित्सा,विज्ञान विषयों पर कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियों, कार्यशालाओं, परिचर्चाओं तथा व्याख्यानों का आयोजन कर देश, विदेश और प्रदेश के वैज्ञानिकों को एक मंच पर लाने का एक बहुत बड़ा काम कर सकी है। मैं दो दशक से अधिक से मालवा प्रांत कार्यकर्ता के रूप में आपके संपर्क में रहा। मैंने हमेशा उन्हें विज्ञान एवं तकनीकी के नये ऐसे विषय को उठाते हुए,उन पर बोलते हुए सुना जो कहीं गुम हो चुके थे या जिन पर लोगों का कभी ध्यान ही नहीं गया। उदाहरण के लिए स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव के दौरान स्वतंत्रता संग्राम में वैज्ञानिकों की भूमिका पर उनका दिया व्याख्यान काफी चर्चित रहा है क्योंकि उनके व्याख्यान के पहले कम ही लोग जानते थे कि स्वतंत्रता प्राप्ति में भारतीय वैज्ञानिकों ने भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। ऐसा ही एक अन्य व्यख्यान पैट्रिक गिडे पर सुनने को मिला जिन्होंने इंदौर सहित भारत के कई शहरों की प्लानिंग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनका हमेशा प्रयास रहता था कि कृषकों, कारीगरों आदि के पास जो व्यावहारिक तकनीक और कौशल है उसका पता लगाकर दस्तावेजीकरण किया जाए। उनका यह भी मानना था कि ऐतिहासिक धरोहरों के निर्माण में जो तकनीक उपयोग में लाई गई है उसे भी नये विज्ञान के संदर्भ में पुनः प्रकाश में लाया जाए। वे भारतीय वैज्ञानिकों(आधुनिक एवं पुरातन) के शोध से,उनकी उपलब्धियों से भारतीयों को परिचित कराने के पक्षधर थे।

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